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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३०३ तार्तीयीकस्तेषां, विनेयपरमाणुरऽनणुशास्त्रेऽस्मिन् , श्रीक्षेमकीर्तिसूरिर्विनिर्ममे विवृतिकल्पमिति ॥११॥ श्रीविक्रमतः कामति, नयनाग्निगुणेन्दु १३३२ परिमिते वर्षे, ज्येष्ठश्वेतदशम्यां, समर्थितैषा च हस्ताकें ॥ १२ ॥ __ और इस पाठसे यह विदित हूवा कि श्रीउद्योतनसूरिजी श्रीपद्मचंद्रसूरिजी चित्रवाल एसा गच्छका नाम उत्पन्न करनेवाले श्री. धनेश्वरसूरिजी उस चित्रवालगच्छमें कालक्रमसें श्रीभुवनेन्दुसूरिजी हवे, और दोनुं पक्ष शुद्धजिनोंका एसे उनोंके शिष्य श्रीदेवभद्रसूरिजी इनोंके तीन शिष्य हवे जिसमें पहिले श्रीजगचंद्रसूरिजी दूसरे श्रीदेवेन्द्रसूरिजी तीसरे श्रीविजयेन्दुसरिजी और श्रीजगचंद्रसूरिजीके पदमें श्रीदेवेन्द्रसूरिजी हवे इनोंने श्राद्धदिनकृत्यवृत्ति धर्मरत्नप्रकरणति वगेरे ग्रंथ बनाये हैं इन ग्रंथोंकी अंतप्रशस्तिमें इस तरह लिखा है। क्रमशश्चित्रवालकगच्छे, कविराजराजिनभसीव, श्रीभुवनचंद्रसूरिर्गुरुरुदियाय प्रवरतेजाः ॥१॥ इत्यादि पूर्वोक्तप्रमाणे इहांपर जाणलेना इन श्रीदेवेन्द्रसूरिजीके शिष्य श्रीविद्यानंदमूरिजी वगेरे पाट चले हैं सो प्रसिद्ध है, और श्रीजगच्चंद्रमुरिजी दूसरे श्रीविजयेन्दुसूरिजी इनके तीन शिष्य पहिले श्रीवज्रसेनसरिजी दूसरे श्रीपद्मचंद्रमुरिजी तीसरे श्रीक्षेमकीर्तिसूरिजी इनोंने श्रीबृहत्कल्पकी वृत्ति १३३२ में रचि है उसमे इसतरे लिखा है, और इनोकी पाटपरंपरा आगे इस तरह चली है, तद् यथा श्रीदेवेन्द्रमुनीन्दोर्विद्यानन्दादयोऽभवन् शिष्याः, लघुशाखायां तु गुरोर्विजयेन्दोश्च त्रयः पट्टे ॥ १४०॥ गरिजी इनोन र इनोकी पारधानन्दायायः For Private And Personal Use Only
SR No.020406
Book TitleJinduttasuri Charitram Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganmalji Seth
PublisherChhaganmalji Seth
Publication Year1925
Total Pages431
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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