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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org A २५८ उपसर्ग प्रमादरहित उपयोगसहित निरन्तर रक्षा करें, श्रीजिनवल्लभगणिवाचनाचार्य कैसे समस्त विद्या के निधान है सो देखातें सर्वसिद्धान्त जाणनेवाले, सूत्रपाठ और अर्थसें, कंठ हैं पाणिनी आदि आठ व्याकरण जिनोंकों, और मेघदूत आदि सर्व महाकाव्य कंठ हैं, रुद्रट उदभट दंडि वामनभामहादि अलंकार ८४ नाटक सर्व ज्योतिष शास्त्र, जयदेवादि सर्व छंद ग्रंथ और जिनेन्द्रमतकी विशेषकरके स्थापना करनेवाले, श्रीसिद्धसेनाचार्य श्रीहरि - भद्राचार्य श्री अभयदेवाचार्य कृत सम्मति तर्क अनेकान्तजय पताकादि तर्क शास्त्र और ८४ हजार स्याद्वादरतनाकर प्रमाण लक्ष्मा प्रमाणरहस्य शब्दलक्ष्मादि ग्रंथोंकों अपणे नाममुताबिक जाणनेवाले और कन्दली किरणावली न्यायशंकर नंदन कमलशीलादि परदर्शनसंबंधि तर्कादि शास्त्रों में बहुतहि विचक्षण भये हैं, इसका यह भावार्थ हूवा कि- इग्यारमी सदीमें बारमी शादीके प्रारंभसमय जो प्राचीन अर्वाचीन स्वदर्शनसंबंधि पंचांगी सहित सर्व जैन सिद्धान्त और स्वदर्शनसंबंधि सर्वव्याकरण न्यायकाव्य कोश छंद साहित्य अलंकार ज्योतिष वैद्यक प्रकरण चरित्र रास कथा चम्पू नाटकादि सर्व शास्त्र अपणे नाम सदृशउपस्थित किये हुवे है, और परदर्शनसंबंधि अनेकमताश्रित कपिल वैदिक जैमिनी गौतम कणाद बौद्ध शैव वैदांतिक वैष्णवादि मताश्रित मूलसिद्धान्त रहस्य सहित और अन्यदर्शन संबंधि सर्व व्याकरण न्याय काव्य कोश छंद साहित्य अलंकार ज्योतिष वैद्यक वेदस्मृति पुराण इतिहास कथा चम्पू नाटकादि गद्य पद्यात्मक सर्वशास्त्र अपणे नाममुताबिक जानते हैं और पुरुष संबंधि सर्व Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private And Personal Use Only
SR No.020406
Book TitleJinduttasuri Charitram Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganmalji Seth
PublisherChhaganmalji Seth
Publication Year1925
Total Pages431
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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