SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 200
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥३॥ सुरे वायवडी लघुनीत तणी, संज्ञा कुंगुलिया दोषसुणी, नख केस समारण रुधिर क्रिया, चांदीनी नांखे चांबडिया ॥४॥ दांतणनें वमन पीये कावो, खावे धांणी फुली खावो, सुवे वेसामण विसरावे, अज गज पशुनें दामण दावे ॥५॥ सिरनासा कान दसन आखे, नख गालवपुषना मल नांखे, मिलणो लेखो करे मंत्रणो, विहचण अपणो करि धन धरणो, ॥ ६॥ वेसे पग ऊपरि पग चढियां, थापे छाणा छडे ढूंढणीयां, सूकवे कप्पड वप्पड वडियां, नासीय छिये नृप भय पडियां ॥७॥ शोके रोवे विकथाज कहे, इहां संख्या बेंतालीस लहै, हथियार घडेनें पशुबांधे, तापे नाणों परखे रांधे ॥८॥ भांजी निसही जिनगृह पैसे, धरे छत्रनें मंडपमें बेसे, पहिरे वस्त्र अनें पनही, चामर वीझै मनठाम नहीं ॥९॥ तनु तेल सचित्त फल फूल लीये, भूषण तजि आप कुरूप थीये, दरसणथी सिर अंजली न धरे, इग साडे उत्तरा संग न करे ॥ १० ॥ छोगो सिरपेच मोड जोडे, दडिये रमनें बैसे होडै, सयणां सुं जुहार करे मुजरो, करे भंड चेष्टा कहे वचन बुरो ॥११॥ धरे धरणो झगडे उल्लंठी, सिर गुंथे बांधे पालंटि, पसारे पग पहरे चाखडियां, पगझटक दिरावे दुरवडीयां ॥ १२ ॥ करदमलहे मैथुनमंडे, जूआं बलि अठतिहां छंडे, उघाडे गुझ्यकरे वायदा, काढे व्यापार तणाकायदां ॥ १३ ॥ जिनहर परनालनो नीरधरे, अंघोले पीवाठाम भरे, दूषण जिन भवनमें एदाख्या, देववंदन भाष्यमें जे भाष्या ॥ १४ ॥ सुज्ञानी श्रावक सगति छतां, आसातन टाले वारसतां, परमाद वसे कोई थाये, आलोयां For Private And Personal Use Only
SR No.020406
Book TitleJinduttasuri Charitram Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganmalji Seth
PublisherChhaganmalji Seth
Publication Year1925
Total Pages431
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy