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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ दूसरा सगर चक्रवर्तिः ॥ अयोध्या नगरीमें, सुमित्र नामें राजा हुवा, जिसके जसवती नामें पट्टराणी, जिनके पुत्र सगर नामें दूसरा चक्रवर्ति हुवा । इनकै भद्रा नामें स्त्रीरत भई । जब चक्ररत्नादिक, १४ रत्न उत्पन्न हुए, तब भरत क्षेत्रके ६ खंडकों साधके राज्य किया। अंतमें चारित्र ग्रहण करकै ७२ पूर्व लाख वरषको आयुष्य पूरण करके, सिद्धि स्थानको प्राप्त हुवा ॥ तीसरा मघवा नामें चक्रवर्तिः॥ सावत्थी नगरीमें, समुद्रविजय नामें राजा, जिसके सुभद्रवती नामें पट्टराणी हुई, जिनके पुत्र मघवानामें तीसरा चक्रवर्ति हुवा । इनके सुभद्रानामें स्त्रीरत्न हुई । अंतमें शुभभावसें चारित्र लेके सर्व पांच लाख वरपको आयुष्य पूरण करके देवलोककों प्राप्त हुवा ।। इति ॥३॥ ॥ चोथा सनत्कुमारनामें चक्रवतिः॥ हथनापुरनामा नगरमें, अश्वसेननामें राजा, जिसके सहदेवीनामें पट्टराणी, जिनकेपुत्र सनत्कुमार नामें चोथा चक्रवर्ति हुवा । इनके जया नामें स्त्रीरत्न भई । ६ खंडका राज्य किया, अंतमें शुभभावसें चारित्र ग्रहण करके, तीन लाख वरपका आयुष्य पूर्ण करके देवलोककों प्राप्त हुवा ॥ इति ॥ ॥ अथ पांचमा, श्री शांतिनाथ चक्रवर्तिः ॥ हथनापुरनामा नगरमें, विश्वसेननामें राजा, जिसके अचिरानामें For Private And Personal Use Only
SR No.020406
Book TitleJinduttasuri Charitram Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganmalji Seth
PublisherChhaganmalji Seth
Publication Year1925
Total Pages431
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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