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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Achan ८९ ७२ वर्षका आयुष्यमान पूरण करके, सिद्धि स्थानको प्राप्त भये शासनदेव ब्रह्मशांति यक्ष । शासनदेवी सिद्धायिका । मानव गण । महिषयोनि । कन्या राशि । सम्यक्त पायेवाद २७ में भव मोक्ष गये श्री महावीरखामी मोक्ष गये पीछे, तीन वर्ष, साढी आठ महिना गए, चौथा आरा उतरा और पांचमा आरा सरू हुवा ॥ इति २४ श्री वर्द्धमान स्वामीका ५५ बोल गर्भित अधिकारः इसी तरै चोवीश भगवान्का नाम दृष्टांत कहा ॥ अब २४ भगवान्के, १२ चक्रवर्ति, ९ वासुदेव, ९ बलदेव, ९ प्रति वासुदेवादि बडे २ उत्तम पुरष मोक्षगामी राजादिक भए, जिन सर्वका नाम मात्र दृष्टांत इहां लिखतां हुं ॥ अथ १२ चक्रवर्ति अधिकारः॥ ॥ पहला श्री भरत चक्रवर्तिः ॥ विनीता नगरीमें प्रथम भगवान् श्री ऋषभदेव नामें राजा हुवा जिनोंके सुमंगला नामें राणी, जिसका पुत्र भरत नामें पहला चक्रवर्ति हुवा इनके ६४ हजार स्त्रीयों हुई, जिसमें मुख्य स्त्रीरत्न सुदामा नामें भई । जब चक्ररत्नादिक १४ रत्न उत्पन्न हुवा, तब इस भररा क्षेत्रके छ खंड में राज्य किया। अंतमें आरीसा महलमें, शुद्ध भावनासें केवलग्यान पायके चारित्र ग्रहण करके, ८४ पूर्व लाख वरषको आयुष्य पूरण करके मोक्षकों प्राप्त हुवा ॥ १ ॥ इति ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020406
Book TitleJinduttasuri Charitram Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganmalji Seth
PublisherChhaganmalji Seth
Publication Year1925
Total Pages431
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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