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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ८० Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir लज्ञानी भये ।। ५०० चवदे पूर्वधारी भये ॥। १ लाख ७२ हजार श्रावक भये || ३ लाख ५० हजार श्राविका भई ( इत्यादिक) बहुतसे जीवोंका उद्धार करके, अंतसमें समेत शिखरजी पर्वतऊपर, १००० साधुवोंके साथ, १ मासका अनशन कीया ॥ काउसग्ग मुद्राई, आत्मगुणके ध्यानसें, सर्व कर्मोंकों खपायके, मिति ज्येष्ट वदि ९ के दिन, ३० हजार वर्षको आयुष्य मान पूरी करके, सिद्धि स्थानकों प्राप्ति भये । शासनदेव वरुण यक्ष | शासनदेवी नरदत्ता । देवगण । वानर योनि मकर राशि । अंतरमान ६ लाख वर्ष । सम्यक्त पायेवाद, तीसरे भव में मोक्षगये || इणोकेवारे रामचंद्र लक्ष्मण ८ मां वलदेव वासुदेव रावणप्रति वासुदेव हुवा || || इति५५ बोल गर्भित २० माश्री मुनि सुव्रतस्वामी अधिकार: २० || ॥ अथ २१ मा श्री नमिनाथस्वामी अधिकार: ॥ मथुरा नामा नगरीमें इक्ष्वाकुवंशी, विजय नामा राजा हुवा तिसके क्या नामें पट्टराणी भई । जिसकी कुखमें, प्राणत नामा देव लोकसें चवके, मिति आशोज सुदि १५ के दिन भगवान् उत्पन्न भया । ( तब ) मातायें गजादि अग्नि शिखापर्यंत १४ स्वप्ना प्रगटपणें मुखमें प्रवेश कर्त्ता हुवा देखा ( पीछे ) सर्व दिशा सुभिक्षसमें, मिति श्रावण वदि ८ के दिन, अश्विनी नक्षत्रे जन्मकल्याणक हुवा ( उसीबखत ) ५६ दिशा कुमारीयों मिलके, सूतिका महोच्छव कीया ( पीछे ) ६४ इंद्र मेरु पर्वतपर भगवा - नकों ले जायके जन्म महोच्छव कीया ( तिस पीछे ) विजय For Private And Personal Use Only
SR No.020406
Book TitleJinduttasuri Charitram Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganmalji Seth
PublisherChhaganmalji Seth
Publication Year1925
Total Pages431
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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