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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ६५ कीया । तिस पीछे कृतवर्म राजायें, १० दिवस पर्यंत, मोटो जन्ममहोच्छव करके, सर्व न्याती गोती प्रजागणकुं मनसा भोजन करायके, विमल कुमर नाम स्थापन किया । ( नाम स्थापनका यह हेतु है) कि जब भगवान् माताके गर्भमें आये । तब माताकी बुद्धि, अरु शरीर, दोनुं निर्मल हो गये (इस्सें) विमल कुमर नाम स्थापन किया । वाराहका लंछनयुक्त, कंचनवर्ण, शरीर प्रमाण ६० धनुष हुवा । ३ ज्ञान सहित, महा तेजस्वी, १००८ लक्षणालंकृत, भोगावली कर्म निर्जरार्थे, विवाह करके, क्रमसें राज्यपद धारण किया । अवसर आये, लोकांतिक देवताके वचनसें, संवत्सर पर्यंत बडो दान देके, मिति माघ सुदि ४ के दिन, कंपिलपुर नामा नगरमें, छठ तप करके, जंबू वृक्षके नीचे, १००० पुरुषोंकेसाथ, दीक्षा ग्रहण करी । उस वखत चोथो मन पर्यव ज्ञान उत्पन्न भयो । प्रथम छठको पारणो, जय राजाके घरे, परमान क्षीरसें हुवो । दो मास छअस्थपणे विहार करके, कंपिलपुरी नगरीमें आये । छठ तप सहित, पोषसुदि ६ के दिन, लोकालोक प्रकाशक, केवल ज्ञान, केवल दर्शन उत्पन्न हुवा । ( तब ) चतुर्निकाय देवगणका किया हुवा, समोसरणमें, १२ परपदाके सन्मुख, भगवान् धर्मोपदेश देके, चतुर्विध संघकी स्थापना करी ॥ भगवान्के ६८ हजार (६८०००) सर्व साधु हुये (जिसमें) मंदर प्रमुख ५७ गणधर पद धारक हुये ॥ धरा प्रमुख १ लाख ८ सो (१००८००) सर्व साध्वी हुई ॥ ९ हजार (९०००) वैक्रिय लब्धि धारक भये ॥ छत्तीससो (३६००) वादी विरुद धारक हुये ॥ ५ दत्तसूरि. For Private And Personal Use Only
SR No.020406
Book TitleJinduttasuri Charitram Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganmalji Seth
PublisherChhaganmalji Seth
Publication Year1925
Total Pages431
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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