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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Achan ज्ञानीभये ॥ १२ सो (१२००) चवदे पूर्वधारीभये ॥ सैंतालीससो (४७००) वादी विरुदधारीभये ॥ २ लाख १५ हजार (२१५०००) श्रावक हुये ॥ ४ लाख २६ हजार (४२६०००) श्राविका हुई ( इत्यादिक ) बहुतसे जीवोंका उद्धार करके, अंतसमें चंपानगरीमें, ६०० साधुवोंकेसाथ, १ मासका अनशन ग्रहण कीया । काउसग्ग मुद्रायें, आत्मगुणके ध्यानसें, सर्व कर्मकों खपायके, आषाढसुदि १४ के दिन, ७७ लाख (७७०००००) वर्षको आयुष्य पूरण करके। सिद्धि स्थानको प्राप्ति भये । शासनदेव कुमारयक्ष । शासनदेवी चंडा । राक्षसगण अश्वयोनी । कुंभराशि। अंतरमान ३० सागरोपम । सम्यक्तपायेवाद तीसरे भवमें मोक्ष गये । इनोके बखतमें दूसरा द्विपृष्टनामा वासुदेव (अरु) विजय नामें बलदेव हुवा । इनका वेरी, तारक नामें दूसरा प्रतिवासुदेव हुवा । इति ५५ बोलगर्भित श्री वासुपूज्यखामी अधिकारः ॥ १२ ॥ ॥अथ १३ मा विमलनाथस्वामी अधिकारः ।। कंपिलपुरी नगरीमें, इक्ष्वाकुवंशी, कृतवर्मनामें राजा हुवा (तिसके ) श्यामानामें पट्टराणी । जिसकी कूखमें, सहस्रारनामें ८ मा देवलोकसें चवके, मिति वैशाखसुदि १२ के दिन भगवान उत्पन्न हुये, तब मातायें गजादि अग्निशिखापर्यंत १४ स्वप्ना, प्रगटपणे मुखमें प्रवेशकर्ता देखा पीछे सर्वदिशा सुभिक्षसमें, मिति माघसुदि ३ के दिन, उत्तराभाद्रपद नक्षत्रे जन्मकल्याणक हुवा (उसीबखत) ५६ दिशा कुमारीयों मिलके, सतिका महोच्छव किया पीछे ६४ इंद्र मिलके, मेरु पर्वतपर, भगवानकों लेजायके, जन्म महोच्छव For Private And Personal Use Only
SR No.020406
Book TitleJinduttasuri Charitram Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganmalji Seth
PublisherChhaganmalji Seth
Publication Year1925
Total Pages431
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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