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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ॥ पूजा ॥ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir म एह बुं जलुं । निपजावी जिनपद निरमलुं आऊ बंध बिचै इक नव करी । श्रद्धा संवेग थी थिर धरी । तिहां थी चविय लहै नर ज व उदार । भरतें तिम ऐरव तेज सार । महावि देह विजय प्रधान | मऊ खंडे अवतरे जिन निधान ॥ ॥ ढाल पुण्यें सुपना देखें । मनमें हर्ष विशेष गजवर उज्जल सुंदर । निर्मल वृषन मनोहर निर्भय केसरी सिंह | लखमी प्रतिह ावीह अनुपम फूलनी माल । निर्मल शशि सुकमा ल । तेज तरण अति दीपै । इंद्र ध्वजा जग जीपें । पूरण कलस पंडूर । पदम सरोवर पूर । इग्यार में रयणायर । देखे माता जी गुण सायर । बारम जुवन विमान । तेर में रत्न निधान । अग्नि शिखा निरधूम | दे खें माताजी अनुपम । हरखी रायने जासें । राजा अर्थ प्रकाशें । जगपति जिन वर सुख कर । होस्यें पुत्र मनोहर । इंदा दिक जसु नमस्यें | सकल मनोरथ फलस्यें ॥ ॥ वस्तु ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020404
Book TitleJin Pooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamchandra Gani
PublisherRushi Nankchand
Publication Year1933
Total Pages212
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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