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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जैन विवाह विधि मत्र ॐ हीं श्रीं भगवत्यै केवलज्ञानस्वरूपार्य लोकलोकप्रकाशिकायै सरस्वत्यै जलं समर्पयामि स्वाहा । इति जलपूजा । इसी तरह आगे मंत्र बोलते जाना और 'जल समर्पयामि' की जगह जो द्रव्य चढाना हो उसका नाम लेकर पूजा करते जाना तात्पर्य यह हुआ कि जल पूजा करने के बाद चंदन-पुष्प-धूप, दीप-अक्षत (चावल) नैवेद्य (शक्कर या मिठाई) फल इन अष्ट द्रव्य का नाम बोलकर पूजा करना बाद दोनों हाथ जोडकर नीचे दर्ज किया हुआ स्तोत्र पढे । सरस्वती स्तोत्र (दुतविलंबित छन्द) कलमरालविहगमवाहना, सितदुकूलविभूषणलेपना। प्रणतभूमिरूहामृतसारिणी, प्रवरदेहप्रभाभरधारिणिी ।। १ ।। अमृतपूर्णकमंडलुधारिणी, त्रिदशदानवमानवसेविता । भगवती परमैव सरस्वती, मम पुनातु सदा नयनाम्बुदम् ।। २ ।। जिनपतिप्रथिताखिलवाडंयी, गणधराननमंडपनर्तकी। गुरूमुखाम्बुजखेलनहंसिका, विजयते जगति श्रुतदेवता ।। ३ ।। अमृतदीधितिबिम्बसमाननां, त्रिजगतीजननिमितमाननाम् । नवरसामृतवीचिसरस्वती, प्रमुतिदः प्रणमामि सरस्वतीम् ।। ४ ।। विततकेतकपत्रविलोचने, विहितसंसृतिदुष्कृतमोचने । धवनपक्षविहंगमलाछिते, जय सरस्वति! पूरितवांछिते ।। ५ ।। भवदनुग्रहलेशतरडिंता-स्तदुचितं प्रवदन्ति विपश्चितः । नृपसभासु यत- कमलाबला, कुचरकलाललनानि वितन्वते ।। ६ ।। गतधना अपि हि त्वदनुग्रहात, कलितकोमलवाक्यसुधोर्मयः । For Private and Personal Use Only
SR No.020399
Book TitleJain Vivah Vidhi Tatha Sharda Pujan Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyavijay, Muktivijay
PublisherNandishwar Dwip
Publication Year1999
Total Pages26
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size3 MB
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