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SM Mahavam
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अर्थ सहित
संयम-1 केरां कंडक वर्ग कंडक भला; पाछानुपूविं वुद्धिं उत्तर एहनां भावीए, खिमाविजय जिन श्रेणीनुं चरण उत्तम भक्ति भावे पावीए ॥१०॥ स्तवनम्
भावार्थ:-अल्प बहत्वनो विचार करतां अनंत गुण वृद्धिनां संयम स्थानक सर्वथी थोडा ॥१८॥
जाणवा तेथी असंख्यात गुण वृद्धनां संयम स्थानक कंडक वर्ग अने कंडक जेटलां एटले परमार्थे असं ख्यात गुणा पश्चानुपूर्वीए वृद्ध आगल आगल एरीते भावीए ए सर्वत्र अनंतर वृद्धि स्थान असंख्यात गुणा भाव इति खिमाविजय जिन कहेतां श्री वीर परमेश्वर तेनां चरण कमलनी उत्तम विधियुक्त भक्तिना महिमाथी पामीए संयम श्रेणि भव निस्तार थइए ॥१०॥
सर्वगाथा-४०कलश-रागधन्याश्री-गायोगायोरे भलें वीर जगत गुरु गायो॥ए आंकणी ॥ संयम श्रेणि स्थानक षड्विध, ठवणा यंत्र बनायो; अहठाण प्ररूपणा करतां, मनुज जनम फल पायोरे-भले०॥१॥
SARACIAS
॥१८॥
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