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________________ Shu Mahavam na Kendre Acharya Si Kag uya mandi कल्याणकर्नु ॥८६॥ ढाल१-पहेली-इणिपरे राज्य करत रे ॥ ए देशी ॥धुरि कार्तिक शुदि त्रीज, सुविधि जिनेसः । स्तवन. केवल उजवल पामीया ए॥ ६॥ बारसें अरजिन नाण, कार्तिक वदी वली पंचमिरे; सुविधि जन्म हओ ए॥७॥ छठे नवम जिन दीक्षा, वीर दशमें दीक्षा; सिद्धि इग्यारसें जिन छट्ठा ए ॥८॥ मृगशीर्ष शुदि अभिराम, दशमि दिवस जिहां; अरजिन जन्म मुक्ति हुआ ए॥९॥ इग्यारसे मल्लीनाथ, जन्मज व्रत नाण; नमी केवल अरबत वली ए॥१०॥ चउदसें संभव देव, जन्म वखाणि ए; संभव व्रत पुनिम दिन ए ॥११॥ मृगशिर वदि जिनपास, दशमि दिवसे जण्या; इग्यारसें, दीक्षा लही ए ॥१२॥ बारसे शशीजिन जन्म, चारित्र तेरसे; चउदशे शीतल केवली ए॥१३॥ | ढालर-बीजी ॥ राग देशाख ॥ मल्हार ॥ आव्योआव्यो रे॥ए देशी॥पोसशुदि छठेरे केवल नाण विमल तणुं, नवमि दिनरे शांतिनाथ केवल भणुं; अग्यारसेरे अजितनाथ केवल भलं, अभि-gnen नंदनरे चउदशे केवल निर्मलं ॥ १४ ॥ त्रूटक-निर्मल केवलनाण पूनिम दिने धर्मजिने लद्यु, पोस वदि छठे छट्ठा जिनने च्यवन भविमन गहगहो; बारसे शीतल जन्म दीक्षा रुषभ तेरसें शीवगया, 564C5%ESC4545 - 45 For Pave And Personal use only
SR No.020395
Book TitleJain Prachin Purvacharyo Virachit Stavan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotichand Rupchand Zaveri
PublisherMotichand Rupchand Zaveri
Publication Year
Total Pages411
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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