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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra शांतिना थना. ॥२॥ www.kobahrth.org. Acharya Shn Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ २ ॥ लक्ष जोयण वीमान रची, पालक देवे रसाल; छाग सिंह वाहन ठवी आवे गजपुरपाल ॥ ३ ॥ ढाल ॥ राग पूर्वी ॥ सिद्ध चक्र पद वंदो हो भवियां एदेसी ॥ जन्म महोच्छव इम कीजें । भवो भवनां दुःख छीजे हो भवियां जन्म ० ॥ ० ॥ जिनधर आवि जिनजननीनें, तीन प्रदक्षिणा दीजें; वांदि कहे हे रतन कुक्षी, जगमें सवि सुख लीजें हो भ० जन्म० ॥ १ ॥ अवस्थापन निंद्रा तव दीधि, मुके प्रतिबिम्ब पास; अरिहा हरी बेकर मध्ये धरीनें, करि पंचरूप उल्लास हो भ० जन्म० ॥२॥ बहु यत्नें मघवा जिन ग्रहीनें, मेरु शिखर आवे रंगे; पांडुक कंबल शीलानि उपरें, श्री अरिहा लेइ अंके हो भ० जन्म० ॥ ३ ॥ दश वैमानीक वीस भवण वह, बत्रिस व्यंतर इंदा; एकसो बत्रीस मली रविचंदा, प्रणमें जिन अरविंदा हो भ० जन्म० ॥ ४ ॥ सोहम ईशाननी अग्र महिषियो, अड अड संख्या धारो; चमर बलेंद्रनि पण पण कहीयो, नव नीकायनी बारा | भ० जन्म० ॥ ५ ॥ व्यंतर ज्योतिषीनी इंद्राणि, अभिषेका च्यार च्यार; आतम तारण दुर्गति वारण, करें अभिषेक उदार हो भ० जन्म० ॥ ६ ॥ त्रायस्त्रिंशक सामानिक आनीक, एक एक तस विचार; अंगरक्षक परखदा पन्ना, लोकपालनां For Pivate And Personal Use Only पंच क० स्तवन ॥ २ ॥
SR No.020395
Book TitleJain Prachin Purvacharyo Virachit Stavan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotichand Rupchand Zaveri
PublisherMotichand Rupchand Zaveri
Publication Year
Total Pages411
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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