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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra शांतिनाथना. ॥ ५५ ॥ www.kobahrth.org. मेरे लाल० तीर्थंकर० ॥ ५९ ॥ पुफोत्तरा वतंस के विमाने सागर वीश, मेरे लाल० ॥ सुर चवीओ सुख भोगवी, हुआ ते भव छब्बीस, मेरे लाल० तीर्थंकर० ॥ ६० ॥ ढाल — ॥ ५ ॥ भमारुलीनी ॥ ए देशी ॥ सत्तावीशमो भव सांभलो तो, भ्रमरूली, रुअडुं माहणकुंड गामतो; ऋषभदत्त ब्राह्मण वसे तो, भमरूली, देवानंदा धारणी नाम तो ॥ ६१ ॥ कर्म रचुं लव लेश हजी तो, भ्रमरुली, मरीचिना भवनुं जेह तो; प्राणत कल्प थकी च्यवी तो, भमरुली, द्विजकुलें अवतरिया तेह तो ॥ ६२ ॥ चउद सुपन माता लहे तो, भमरुली, आणंद होय रे बहुत तो; इंद्रे अवधि ए जोइउं तो, भमरुली, एह अछेरा भूत तो ॥ ६३ ॥ व्यासी दिन तिहां कणे रह्यां तो, भमरुली, इंद्र आदेशी देवतो; सीद्धारथ त्रिशला कूखे तो, भमरुली, गर्भ पालट्यो ततखेव तो ॥ ६४ ॥ चउद सुपन त्रिशला लहे तो, भमरुली, शुभ दोहलें जप्यो जाम तो; जन्म महोच्छव तिहां करे तो, भमरुली, इंद्र इंद्राणी ताम तो ॥ ६५ ॥ वर्द्धमान तस नाम दीउं तो, भमरुली, देव दीयुं महावीरतो; हरखेश्यं परणावीयां तो, भ्रमरुली, सुख विलसें घरे वीर तो ॥ ६६ ॥ माय For Pivate And Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पंच क० स्तवन. ॥ ५५ ॥
SR No.020395
Book TitleJain Prachin Purvacharyo Virachit Stavan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotichand Rupchand Zaveri
PublisherMotichand Rupchand Zaveri
Publication Year
Total Pages411
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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