SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 32
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कुमतोच्छेदन भास्कर // [25] कह कर बुलाया है उसने ऐसे नहीं पहचाना कि यह साधु जैन का है जो मुनि का मुख बंधा हुआ होता तो राजा ऐसा जानता कि यह तो जैनका साधु है जैन के साधु मृग नहीं रखते ऐसा जानकर चला जाता इस प्रमाणसे भी मुख बंधा हुआ संभव नहीं होता इस सूत्रके अर्थको बिचारो क्यों हट कदाग्रह धारो इस तोबरे को उतारो जिससे होय तुम्हारो निस्तारो इस वाक्यको सुनकर मुख बांधने वाले कहते हुए कि तोवरा तो असली घोडे के बंधता है कुछ गधेके नहीं बिना मुख बांधे वायुकाय की हिंसा क्योंकर साधु बचावेगा इसलिये मुख बांधनाही ठीक है ( उत्तर ) भोदेवानप्रिय ! तैंने जो कहा कि तोबरा असली घोडे के बंधता है कुछ गधेके नहीं सो तेरा कहना ठीक है परंतु इस तेरे वाक्य को सुनकर हमको करुणा उत्पन्न होती है कि मनुष्य जाति में उत्पन्न होकर भी उत्तम कुल ओसवाल पोरवाड आदिक कुलको पायकर जैनी नाम धरायकर क्यों तिरियं चपशु जातिमें मिलते हो लज्याभी नहीं पाते हो क्यों अपने कदाग्रहको जमाते हो खोटी कुतर्कों को चलाते हो हमतो जानते हैं कि तुम मनुष्य हो परंतु तुम अपने आपही पशु बनजातहो क्योंकर हम तुम्हारी बुद्धि विचक्षण को समझा और जो तुमने कहा कि मुख बांधे बिदून वायुकाय की हिंसा क्योंकर बचेगी यह तुम्हारा कहना भी अज्ञान सूचक कदाग्रही मालम देता है क्योंकि जिस रीतिसे वायुकाय की हिंसा शास्त्रों में कही है सो रीति दिखाते हैं प्रथम अंग श्री आचारांगसूत्र श्रुतस्कंद 2 अध्येन 1 में देखो सोही दिखाते हैं पाठःसेभिखवा 2 जावपविठेसमाणे सेज्ज पुणे जाणेज्जा असणंवा 4 अच्युसिणवा असंज्जए भिख्युपडियाए सुवेणवाविहुयणे णवा तालियंटेणघा पत्तणवा पत्तभंगणवा साहाएवा साहा भंगणवा पिहुणेणवा पिहुणहथ्थेणवा चेलेणवा चेलकन्नेणवा
SR No.020393
Book TitleJain Ling Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
Author
Publisher
Publication Year
Total Pages78
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy