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________________ - [24] जैन लिंग निर्णय // गाथा में देखो हमने तो ग्रंथ बढजाने के भय से नाम मात्र लिखा है जो उस जगह मख बंधा हुआ होता तो राजा श्रेणिक येही विचारता कि इम रूपवान पुरुष ने मुख क्यों बांधा है सो ऐसा बिचार उन गाथों के अर्थ में नहीं इसलिये जैन के साधु को मुख बांधना असंभव है और भी देखो इस उतराध्येनजी के 18 वें अध्येन में पाठ है सोभी दिखाते हैं (पाठ)। - मयछुभी ताहयगओ किपिल्लु जाणकेसरे भीएसते मिएतथ्य वहइरसमुछिउं 3 अहकेसरंमी उज्जणे, अणगा रेतबोधणे सझाय झाणसंजुते धम्मझाणं झियाएइ 4 अफो वमंडवंमी झायइझवियासवे तस्तगएमिएपासं वह इसे नराहिवे 5 भह आगसओराया खिप्पमागम सोताह हएमीए उपाप्तित्ता अणगारं तथ्थपालइ 6 अहरायातथ्थसं भंतो अणगारोमणाहओमएओमंदपुन्नेणं रसगिद्धेण घिथ्थुणा ___अर्थ-मृगको देखकर घोड़े चढ कर कांपील पुर नगर संबंधी केसरी उध्यान के अंदर जाता हुवा कितनेक मगों को वहां मारते हैं मांस की लोलपता से अब केसरी तो ध्यान के अंदर अणगार मुनि तथा तप उद्यम सहीत स्वाध्याय धर्म ध्यानादिक ध्यान सहित धर्म ध्यान ध्याय रहे हैं एकागहचित करके रुंखेकरी व्याप्पु अर्थात् दरखतों से ढका हुवा नागर बेल का मंडप है धर्म ध्यान होवे है आश्चर्य खपायाहै ऐसे मुनी पास मृग आया मग बंधा हुवा था वो मग मुनि के पास आया वो राजा अब घोडे पर चढा हुवा जल्दी आकर उस राजा ने वह मरा हुआ मृग अणगार मुनि के वहां देखा अब राजा वहां जाता हुवा ऐसे जानता हुवा अणगार मुनि थोडा साहना है ये मग मुनि का होगा वो देख कर मैं थोडा पुन्य का धनी हूं मांस के लोलपी पने से जीव घात किये यहां संजती मिथ्या दृष्टि था उसको अणगार मुनि
SR No.020393
Book TitleJain Ling Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
Author
Publisher
Publication Year
Total Pages78
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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