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________________ [10] जैन लिंग निर्णय // को कहाँहै और नहीं बांधने की को नहीं बांधना कहा क्यों कि देखो कटि पर बांधनेका था तो बांधना कहा जो मुःखपत्तीका बांध ना होतातो मंहपत्ती को ही बांधना कहते इसलिये मुंह पत्ती को बांधना नहीं चाहिये गुरू ज्ञानको समझना चाहिये अज्ञान को छोड़ना चाहिये कहीं मख बांधने का पाठ हमको भी बताना चाहिये केवल मन कल्पित माल न बजाना चाहिये जैन का नाम ले जैन मतको न लजाना चाहिये अन्य मति लिंगको मिटाना चाहिये सत्य जिन आज्ञा को उठाना चाहिये नाहक मिथ्यात् को न बढाना चाहिये सद्गुरूका उपदेश हृदय में धरना चाहिये खेर अब मुख बांधने वाले कहते हैं कि इसको मोहपत्ती क्यों कहा / इसलिये मालूम होता है कि मुंहपत्ती बांधनी ठीकहै ( उत्तर) भोदेवान् प्रिय! हठको छोड कर कुछ बुद्धि का विचार करो कि मुंहपत्ती कहनेसे मुखका बांधना सिद्ध नहिं होसक्ता क्यों कि जो बांधना होता तो प्रथम अंग श्री आचारंग सूत्रके श्रुत स्कंध 2 दूसरा अध्येन२ उद्देशा 3 तीसरेमें एसा पाठ कदापि न होता सो पाठ दिखाते हैं: सेभिखूवाभीषणीवा उसासमाणेवा निसासमाणेवा कासमाणेवा छियमाणेवा जंभाय माणेवा उडुवाएवा वाय णि सग्गेवा करे माणेवा पुवामेव आसयंवा पोसयंवा पाणिणा परि पहित्ता ततोसंजयामेव ओसासज्जा जाव वायाग सग्गेवा करंज्जा // . ___अर्थ-सेकहता तेभित्र अर्थात् साधु अथवा साधवी उसा समाणेवा कहता ऊपरको उसास लेवे ॐथवा नीचेका उसास लेवे अथवा खासेतो वा छींकेतो अथवा जंभाई लेवतो डकार लेवेतो अथवा वाय कहता जो अधोद्वार से हवाका निकलना अर्थात् जिसको ( पाद ) बोलतेहैं इतनी चीजोंके करने के वक्त (पाणिणा परिपेहिता ) कहता हाथसे ढके तिसके बाद ऊपर लिखे कामों -
SR No.020393
Book TitleJain Ling Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
Author
Publisher
Publication Year
Total Pages78
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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