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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १० ) जगह, चौरीकर मारे मरे । समुद्र में चौरी करे, नर छोडदे तू तस्करी || साफहुकम ० ||३|| सरकार में पावेसजा, वो कैसे २ दुःख सहै । उन्को न मिलने दे किसीसे, छोडदे नर तस्करी | साफ हुकम || ४ || मेरेंगुरू नन्दलालजी का, येही नित्य उप देश हैं एक साधुजन इनसे बचे, नरछोडदे तू तस्करी, ॥ साफहुकम || ५ || सम्पूर्णम्. गजल नं० १४ ( परस्त्री गमन निषेध ) तर्ज ॥ पूर्ववत ॥ इज्जत बनिरहगि सदा पर नारी का संग छोड़ दे | अबभी समझ कुच्छ डरनहीं; कुकर्मों से मन मोड़दे; || ढेर || राजा कीचक द्रोपदीपे; चित दिया तब भिमजी । छत उठा स्थम्भ बिच धरा, पर नारी का संग छोड़दे, इज्जत ० ॥ १ ॥ कोई धन खोकर चुप है, कोई जान से मारे गए, । कोई रोग मे सड़२ मरे, परनारी का संग छोड़ दे, इज्जत || २ || केई जूतियों से पिट गए, केई न्यात से खारिज हुए; । कोई राज में पकड़े | गए, पर नारीका संग छोड़दे; | इज्जत || ३ || सती, फिर दृढ़ रहि राजमती | इस तरह पर नारी का संग छोड़दे, ॥ इज्जत ० ||४|| मेरे गुरू नन्दलालजी का; येही नित उपदेश है, ॥ शीलमें सुख हैं सदा, पर नारी का संग छोड़दे || इज्जत ० || ५ || सम्पूर्णम्. शील में सीता तू दृढ़ रहै; । For Private and Personal Use Only
SR No.020389
Book TitleJain Gyan Gajal Guccha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhubchandji Maharaj
PublisherFulchand Dhanraj Picholiya
Publication Year1925
Total Pages23
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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