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गजल नं० १२ [ झूठनिषेधपर]
तर्ज । पूर्ववत् ॥ याद रख नर झूठसे, तारीफ तेरी है नहीं। बदल जाना बोलके, तारीफ तेरी है नहीं ।। टेर ॥ झूठसे प्रतितऊठे, झूठसे झूठीकहै लोग सब झूठागिने, तारीफ तेरी है नहीं ॥ याद रख० ॥१॥ वसुराजका सिंहासन, सत्य से रहता अधर । वो झूठ से गया नर्क में, तारीफ तेरी है नहीं ।। याद रख० ॥२॥ नीच वांछे झूठको, और उत्म नर वांछे नहीं । झूठनिन्दे सब जगह, तारीफ तेरी है नहीं ॥ याद रख० ॥ ३ ॥ झूठ से साधुको भी, आचार्य पद की है मना । व्यवहार सूत्र में लिखा, तारफि तेरी है नहीं ।। याद रख०॥४॥ मेरे गुरु नन्दलालजी का, येही नित्य उपदेश है । ज्यो झूठ में माने मजा, तारीफ तेरी है नही ॥ याद रख० ॥ ५ ॥ सम्पूर्णम ।
गजल नं० १३ ( चोरी निषेधपर )
तर्न ॥ पूर्ववत ॥ साफ हुकमहै शास्त्रका, नर छोडदे तू तसकरी । तेरेहक में ठीक नहींहै, छोडदे नर तसकरी ॥ टेर ॥ बदनीत तसकरकी रहै, करुणा न जिस्के अंगरें । सर्व जाती में चौरी करे, नर छोडदे तू तसकरी ।। साफ हुकम है० ॥ १ ॥ सुरस्थान या शिवस्थान है, या धर्म का अस्थान है । मसजिद मंदिर नागिने, नर छोडदे तूं तस्करी ॥ साफ हुकम० ॥ २॥ सम जगह विसम
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