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________________ www.kobatirth.org ( २ ) केरी, तेणें टाली चिहुं गति फेरी ॥ १२ ॥ सिद्धांत तणो जणनारो, प्रतिलाजी पामो जव पारो ॥ लोचकी धो मुनिवर माथे, प्रतिलाजी पुण्य व्यो साथै ॥१३॥ - महोढुं पारणा केरुं दानो, घरे होय अखूट निधानो ॥ उत्तर वारणे दान तुं देजे, धननो लाहो एम लेजे ॥ ॥ १४ ॥ गुरु यावे उजो थाजे, गुरुनी साहामो पण जाजे ॥ दान दे बोलावा जाय, तेहने पुण्य घणेरुं थाय ॥ १५ ॥ मूके बेसणुं करी परणामो, वली पूढे गुरुने कामो ॥ पढें जगति करीजें जलेरी, श्राशा पहोंचाडे मन केरी ॥ १६ ॥ नारकी सुर तिं पंचमांदे, कांई दान न देतुं प्राहे ॥ उत्तम जव मान व सारो, दान पाखें धि अवतारो ॥ १७ ॥ दान पा खें लड़े दारिद्रो, होय अपजश ने बहु बिडो ॥ दुर्भागी दास ते थाय, घणुं परहाथे कूटाय ॥ १८ ॥ दीन दुःखियो रांको रोगी, परपराजव सहे ते योगी ॥ तेणे नर उत्तम चेतो, रखे रहेतो थोडुं देतो ॥ १७ ॥ न गयो धन लेई कोई, रावण रुद्धि चाल्यो खोई ॥ नवे नंदनें मुम्मण शेव, करपी गयां नीचा नेठ ॥२०॥ जुवो करपीनी ए एंधाणी, सागरें सागर लीधो ताणी || कपिला दासी मति मूंकाणी, थर करपी Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private and Personal Use Only
SR No.020379
Book TitleHitshikshano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhdas Shravak
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1895
Total Pages223
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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