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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (५१) नर सार, दसारण ला लहे लव पार ॥३॥हु संप्रति राजा जेह, प्रासाद वधामणी देह ॥ बाहडदे परमुख जोय, उचित दाने सुखीया होय ॥४॥ करो कीरति दाननी मोजो, सहु जपे विक्रम नोजो ॥ जस कीर ति जगमां रामो, सहु पगें पगें जंपे नामो ॥५॥ त्रण दान कह्यां वली एहो, सुख जोग तणे ते देहो ॥ चक्रवर्ती तणा जोग सारो, पामे प्रेमदा चउस ह जारो ॥६॥ पात्रदान तणो देनारो, श्रेयांस तणे संजारो ॥ दान देती चंदनबालो, कीधां कर्म विकट 'विसरालो ॥७॥ शालिना धन्नो धनसारो, नयसारें लह्यो जव पारो ॥ मूलदेव कयवन्नो जेह, धन्य तुं जंगमदाता तेह ॥ ॥ जग महोटुं पात्रं दान, तुं थाजे तिहां सावधान ॥ पांच नूषणने श्रादरजे, आणंद हियामांहि धरजे ॥ ए॥ आणी हर्ष तणां वली आंसु, अन्न पाणी दिये मुनिने फासू ॥ रोमां चित धरिय उदासो, मुखें मधुर वचननो वासो ॥ ॥ १०॥ दान देतो घणुं अनुमोदे, तेहनुं दारिख मायुं घोदे ॥ लव तेणें मुगति जाय, केई त्रीजे नवें सिद्ध थाय ॥ ११ ॥ पंथनो चाख्यो मुनि श्रायो, दान देतां नर तुं फाव्यो ॥ जगति कीधी गिलाणज For Private and Personal Use Only
SR No.020379
Book TitleHitshikshano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhdas Shravak
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1895
Total Pages223
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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