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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नारी ने हुँ गोविंद, तीरथ कीजें अति थानंद ॥७॥ नारी विनति कीधी घणी, पूरव कथा नांखो आप णी ॥ बांजण कहे जारे पापिणी, कोनी नारी ने कुण तुक धणी ॥ ॥ नारीने निशालीयो यहां क्यांहि, बली मुआं जे मुफ घरमांहि ॥तुमो डोव्यं तर मानव नहिं, शुं डलवा मुक अव्यां अहिं ॥ए॥ घणां वचन गोविंदें कह्यां, मूरख बांजणे नवि सद्द ह्यां ॥ रुषन कहे एहवा नर जेह, धर्म योग्य नवि दीसे तेह ॥ १० ॥ सर्व गाथा ॥ २३ए ॥ ॥ ढाल ॥ न मोह्यो रे वीरवचन ॥ ॥रसें रे ॥ ए देशी ॥ राग श्राशावरी ॥ सिंधूडो ॥ तेहने धर्म न क हिये जाणजो रे, पूर्वव्युग्रहियो रे जेह ॥एक नर पतिनो बेटो आंधलो रे, नोलव्यो मंत्रिये तेह ॥१॥ तेहने धर्म न कहिये जाणजो रे॥ए आंकणी ॥ नूष ण पहेरे दिन दिन नवनवांरे ॥ जातें सबलो दातार ॥ जाचक जन रे आवी गुण स्तवे रे, देतां न लागे हो वार ॥ ते० ॥२॥ नृपने श्रावी मंत्री तिहां ए म कहे रे, सांजलो महोटा हो राय ॥ दान सबल देतो तुम दीकरो रे, नंमार खाती रे थाय ते॥३॥ . For Private and Personal Use Only
SR No.020379
Book TitleHitshikshano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhdas Shravak
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1895
Total Pages223
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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