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(२००) रो वांक, शास्त्रमांहि अडे श्म श्रांक ॥२०॥ मर्म प्रकाशे मांहोमांहिं, तेहने जय नवि. होये क्यांहि ॥ नाग तणी परें पामे मरण, राजा प्रव्य करे तस हरण ॥२१॥सं वाधे सखरो रंग, आप वरगनो न तजे संग ॥ जो पोतें धन जानुं होय, निर्धनने नवि मे सोय ॥ २२ ॥ एक दिन चोखे धरी अनिमान, फोतरांने दी● अपमान ॥ श्या कामें श्रावो फोतरां, मुझने मूकी जा परां ॥३॥ तुम जाते मुफ वाधे लाज, माथे वेश् चोडे वरराज॥ जिनवर आगल मुऊने धरे, गुरु आगल जगहूंली करे ॥२४॥ शकुन जुवे मुफ हाथे करी, बलि वेश जाये थावे जरी ॥ सजन जमतां मूके थाल, तेणें फोतरां मुफ संगति टाल ॥ २५ ॥ बोल्यां फोतरां सुण चोखाय, श्रमो करूं ताहारी रक्षाय ॥ अम श्री अलगा थाश्यो जदा, घणां मूशलां खाशो तदा ॥६॥ घरटीमांहे घालीने दले, चरुवामांहे चूले जश बले ॥ काचा चावल बोले जलमांहि, अम मूके फुःख तुमने प्राहि ॥ २७॥ चोखा कहे शी करो जगाट, तुमो जाउँ तुमारे वाट ॥ त्यारें फोतस्यां खोज्यां बहु, देशरापने चाल्यां सहु ॥ ॥ नसं
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