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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १ ) वाध्यो सापाने वेदना, नृप मरवा हुआ एक मना ॥ नगरबाहेर गया तेणी वार साथै राणी बहु परि वार || १२ || निशा समय सूतो वनमांहि, निजराणी. पासें बे त्यांहिं ॥ रायवदन जव पहोलुं करे, तव मणिधर बाहिर नीसरे ॥ १३ ॥ न्यग्रोध तले एक बीजो. साप, मल्या एकता बिहुये साप ॥ वाल्मिक उदर स पैने कहे, कां तुं राय उदरमां रहे || १४ || निकल बाहिर नृप थाये सुखी, पृथवीपतिने म कर दुःखी ॥ सर्प कहे नवि मूकुं गर, शाकर दूध पामुं नित्य सार ॥ ॥ १५ ॥ त्यारें मर्म प्रकाशे साप, सरु मल्यो नी तु आप ॥ विषकोचलां जो तुमने पाय, तो तुं महीकोही जाय ॥ १६ ॥ उदर साप बोल्यो आरडी, तुकने न मख्यो को गारुडी ॥ ऊनुं तेल बि लमांदे धरे, मरे तुंहि कढा करी करे ॥ १७ ॥ मर्म प्रकाशे मांहो मांह, राणी जागे सुणती त्यांह ॥ वा हाणे षड बेन करे, सर्पयुगल सहि क्षणमां मरे ॥ १८ ॥ नागे राय तपो तिहां रोग, नूपति पूबे औषध योग ॥ राणी कहे मांगीने वात, सर्प दोयनो को निपात ॥ १९ ॥ राय कहे तुं चूकी आप, कां मारयो उपगारी साप ॥ पण राणी नहिं ताहा For Private and Personal Use Only
SR No.020379
Book TitleHitshikshano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhdas Shravak
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1895
Total Pages223
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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