SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 182
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१०) कहे जृमी तारीमाय ॥ नर कहे बोले माकण जिसी, तुऊ नवि खाधो माकण कसी ॥५॥ शुं बोले जे रेशं खिणी,मुशंखिणी तुमनी जणी ॥ सापण केम दिये सामी गाल, रूडो साप तुऊ जीव्युं बाल ॥६॥रहे कहे रांगमारं मूशलें, स्त्री कहे शिर फोडं पाटले ॥ण व चनें नर चढियो काल, काल्या मस्तकना मोबाल ॥७॥ पुरुष तणो तव करड्यो हाथ, कूटा कूटी थ जिम जात ॥ वढतां थाकां दोय जण जिस्य, पु रुष नूमि जश् सूतो तिस्यें ॥७॥ स्त्री महोटा घर नी दीकरी, रूपहीण करमें तस करी ॥ ते सूतीस खरे ढोलिये, घोरे सोय सुख निझा लिये॥॥ चोरें कौतुक दी घj, न लेउ ए नर फुःखीया तणुं ॥ बीजे घरेखातर जश् देह, गणिकानुं घर जाएयुं तेह ॥१०॥ कोटि पुरुषशुं क्रीडा करे, मधुर वचन मुख थी उच्चरे ॥ चोर कहे एहनुकोण लेह, धनका जे विडंबे देह ॥ ११॥ त्रीजे घर खातर दिये ज्यांहिं, ब्राह्मण सूतो दीगे त्यांहिं ॥ उंदरडो हाथे मूतस्यो, स्वस्ति शब्द मुखथी उच्चस्यो ॥ १२ ॥ ए लोजीर्नु कोण धन लेह, लेतां ना नवि नांखे जेह ॥ ए मर शे धन लीधा पनी, अडतां गुण बोली लिये खड़ी For Private and Personal Use Only
SR No.020379
Book TitleHitshikshano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhdas Shravak
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1895
Total Pages223
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy