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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १७५) ति नगरीमां ते पहोतो, मलियो सुपुरुष साथै रे ॥ १५ ॥ एहि० ॥ एणें दृष्टांतें पिता पुत्रने, सुपुरुष साथै जोडे रे ॥ इद्धि रमणी जस कीरति पामे, चढी फरे गज घोडे रे ॥ १६ ॥ एहि० ॥ ए हित शिक्षा ते नर सुशे, जेहने निद्रा थोडी रे ॥ विक या हास्यथकी जे लगा, रह्या मान मद मोडी रे ॥ १७ ॥ एहि ० ॥ सांगणसुत कवि रुषन प्रकासे, ए हित शिक्षारासो रे ॥ जांख्या बोल धरे मनमांहे, पहोंचे तेहनी शो रे ॥ १८ ॥ एहि० ।। १५१० ॥ ॥ ढाल ॥ चोपाईनी देशी ॥ पुत्रतणे परणावे सही, सरीखे रूपें कन्या कही ॥ सरखं वय सरिखुं कुल कर्म, सरिखे सरिखुं सुख दिये पर्म ॥ १ ॥ विडंबना श्रण मिलते होय, प्रकृति बोल मन न मले दोय ॥ त्यारें नारी करे व्यजिचार, परस्त्रीगमन करे जरतार ॥ २ ॥ धारा नगरी त्यां जोज नरिंद, सकल लोक करे आनंद।। तस्कर एक त्यां चोरी करे, रातें खातर देतो फरे ॥ ३ ॥ एक घर खातर पाडी करी, घरमांहि पेठगे परवरी || स्त्री जरतार वढे बे घणुं, वचन न सांखे को केह त ॥ ४ ॥ नर कहे मूंकी घरथी जाय, स्त्री For Private and Personal Use Only
SR No.020379
Book TitleHitshikshano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhdas Shravak
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1895
Total Pages223
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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