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(१२) हत कवी ॥ एह जिन शासनें वात कहेवी ॥ पंच० ॥ ॥ १२ ॥ पाटला उपर जेह नव पद जपे, आनुपूर्वी थकी अधिक जाणो ॥ अरिहंत बार गुण श्राप तिम सिझना, गुणह बत्रीश श्राचारज वखाणो, गुण पचवीश उवसाय थाणो, गुण सत्त्यावीश मुनि ना प्रमाणो, एटले एक शो आठ आणो ॥द म णिका लही माल ताणो ॥ पंच० ॥ १३ ॥ नवकर वाली था दग्ध माटी तणी, लाकडं हाड ने जेह पाणो॥अल्प फल आपशे तेह माला गुणी, गुणत मूरख तजे तेह जाणो॥तेणें मानी अरिहंत आणो ॥ पंच० ॥ १४ ॥ अंगुलि अग्रने मेरु उलंघतां, शू न्यचित्तें फल अलप आपे ॥ शब्दथी मौन जवू मौ नथी मन नहुँ, जाप करतो नवदोर कापे ॥ षन कहे जीवने मुक्ति थापे ॥ पंच० ॥ १५ ॥ ए६ ॥
॥दोहा॥ ॥ जाप जपंतो थाकतो, ध्यान धरे तेणी वार ॥ ध्यान थको थाको जदा, जपे जाप नवकार ॥१॥ बेहु थकी थाको जदा, स्तोत्र गुणे तिण वार ॥ पूजा कोडी समुं वली, जांख्युं पुण्य अपार ॥२॥ स्तोत्र कोडि सम जप कह्यो, जाप कोडि सम ध्यान ॥ध्या
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