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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ ६ ॥ पूरुंज फल तस होय जिनवर कहे, हाथ लेतां जिके सूत्रमाला ॥ मुक्ति नगरी तणो तेह राजा सही, प्रथम पामे झछि रमणी बाला ॥ तेहनें पुर गज कोडि काला ॥ पंच० ॥ ७॥ आप अंगुष्ठ उ पर लेश नित्य गुणे, जेह मुक्ति तणो पुरुष अर्थी ॥ तर्जनी एह उपचार पण उपरें, मध्यमा आपती धन धन धरथी॥तेह नवि नीकले आप घरथी॥पंच०॥ ॥७॥ जेह अनामिका उपर लेई गुणे, तेहने घर नित्य शांति थाय ॥ कहीय कनिष्ठिका आकर्षण उ परें, वस्त गणनार साहामीज ध्याय ॥ शत्रु श्रावी नमे तेहना पाय ॥पंच०॥॥नर जिकोन कहे पातक तेह दहे, सागर सात फुःख सोय जाय ॥ आ जे पद गणे पंचास सागर लणे, फुःखने पाप ते दूर थाय ॥ दिवस थोडामांहे मुक्ति जाय ॥ पंच० ॥ १० ॥ पांचशे सागर पाप फुःख सहि गयु, श्रीनवकार मुख पूर्ण नांख्यो ॥ अडशह अदर पद नवे उच्चरे, मुक्त तरुफलरस तीणे चाख्यो ॥ जीव चिहुँ गति तेणें जमत राख्यो ॥ पंच ॥११॥ नवकरवालियें जेह नव पद जपे, तेहथी अधिकफल श्रानुपूर्वी ॥ त पह मास संवत्सर कर्म दहे, तेटलुं कर्म खपे क For Private and Personal Use Only
SR No.020379
Book TitleHitshikshano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhdas Shravak
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1895
Total Pages223
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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