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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१३३) जावें केवली, मृगलांने सुरनी गति फली ॥ १० ॥ वलकलचीरिय परमुख सहु, नावें केवली हा बदु ॥ नाव वडो एणे संसार, जावें तरियां नर ने नार ॥ ११ ॥ धर्म तणा ए चार प्रकार, आराधतां पामे नव पार ॥ वली सांजले आगम सार, मुनिवर देखी हरख अपार ॥ १२ ॥ श्रागम साधुनी निंदा करे, श्रावक शक्ति वारंतो तरे ॥ अजयकुमार वास्या सहु, तेहने पुण्य हर्बु त्यां बहु ॥ ॥ १३ ॥ जीखारी दुवो संयम धणी, तेहनें लोक करे रे धणी ॥ & उ कोडि आणे मूकी सही, स्त्री, घरवात न जाये कही ॥ १५ ॥ बुकि विचारे अजयकुमार, पंच रत्न लीधां तेणें सार ॥ नगर लोकने तेडी कहे, पांच तजे ते पांचे ग्रहे ॥१५॥ पृथ्वी पाणी तेउ वाय, वन स्पति मूके जे जाय ॥ पांच रत्न नर पामे तेह, एक तजे तो एकज लेह ॥ १६ ॥ कोनो जीव न चाले त्यांहि, ए मूक्या नवि जाये क्यांहि ॥ अजयकुमा र कहे कहुं तुम्ह अमो, निंदा साधु करो कां तुमो ॥ १७ ॥ पांच रत्न नवि हाथे धस्यां, विण लीधे पांचे परितस्यां ॥ त्रसकाय तेणे नवि हणे, कंचन पनर सरिखा गणे ॥ २७॥ काम जोग जेणें परिह For Private and Personal Use Only
SR No.020379
Book TitleHitshikshano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhdas Shravak
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1895
Total Pages223
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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