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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हरीतक्यादिनिघंटे कोष्टविन्ना सिंहपुच्छी कलशी धावनी गुहा ॥ ३४॥ पृश्निपर्णी त्रिदोषघ्नी वृष्योष्णा मधुरा सरा। हन्ति दाहज्वरश्वासरक्तातीसारतृड्वमीन् ॥ ३५॥ टीका-पृश्निपर्णी, पृथक्पर्णी चित्रपर्णी, अहिपर्णी, क्रोष्ठविन्ना, सिंहपुछी, कलशी, धावनी, गुहा ये पिठवनके नाम हैं, ॥ ३४ ॥ ये त्रिदोषकी नाशक और धातुकों पुष्ट करनेवाली, गरम, मधुर, और सर है, और दाह, ज्वर, श्वास, तथा रक्तातीसार, तृषा, और वमन, इनको हरनेवाली है. इसको लौकिकमें पृष्टपर्णी ऐसाभी कहते हैं ॥ ३५ ॥ अथ वार्ताकी(बडीकटेरी)नामगुणाः. वार्ताकी क्षुद्रभण्टाकी महती बृहती कुली। हिङ्गुली राष्ट्रिका सिंही महोष्ट्री दुःप्रधर्षिणी ॥ ३६॥ बृहती ग्राहिणी हृद्या पाचनी कफवातहृत् । कटुतिक्तास्यवरस्यमलारोचकनाशिनी ॥ ३७॥ उष्णकुष्ठज्वरश्वासशूलकासाग्निमान्यजित्। टीका-वार्ताकी, क्षुद्रभण्टाकी, महती, बृहती, कुली, हिंगुली, राष्ट्रिका, सिंही, महोष्ट्री, दुःप्रर्षिणी ॥ ३६॥ ये बडीकटेलीके नाम हैं. ये काविज हृदयके हितकारी है, पाचन है, कफवातकी हरनेवाली है, और कडवी, तिक्त, मुखके बिगडे स्वाद, मल, अरुचि, इनको हरनेवाली है ॥ ३७ ॥ और गरम है, कुष्ठ, ज्वर, श्वास, शूल, कास, अग्निमांद्य, इनकोंभी हरनेवाली है. अथ कण्टकारी(भटकटैया)नामगुणाः. कण्टकारी तु दुःस्पर्शा क्षुद्रा व्याघ्री निदिग्धिका ॥ ३८॥ कण्टालिका कण्टकिनी धावनी बृहती तथा । टीका-कंटकारी, दुःस्पर्शा, क्षुद्रा, व्याघ्री, निदिग्धिका ॥ ३८ ॥ कण्टालिका, कटिंकनी, धावनी, बृहती, ये छोटीकटेलीके नाम है. उभे च बृहत्यौ । यत आह शुश्रुतः । क्षुद्रा या क्षुद्रभद्राख्या वृहतीति निगद्यते ॥ ३९॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020370
Book TitleHarit Kyadi Nighant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRangilal Pandit, Jagannath Shastri
PublisherHariprasad Bhagirath Gaudvanshiya
Publication Year1892
Total Pages370
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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