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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गडूच्यादिवर्गः। और कृमि, इनकामी हरनेवाला है. और इसका पका फल भारी है, वातको कुपित करनेवाला है. इसकों स्योनाक कहते हैं. अथ बहत्पञ्चमूललक्षणगुणाः. श्रीफलः सर्वतोभद्रा पाटला गणिकारिका ॥ २९॥ स्योनाकः पंचभिश्चैतैः पंचमूलं महन्मतम् । पञ्चमूलं महत्निक्तं कषायं कफवातनुत् ॥३०॥ मधुरं श्वासकासनमुष्णं लघ्वग्निदीपनम् । टीका:-श्रीफल १, सर्वतोभद्र २, पाटला ३, गणिकारिका ४ ॥२९॥ सो. नापाठा ५, इन पांचोंसें बृहत्पंचमूल होता है. ये तिक्त, कसेला, और कफ, वातका हरनेवाला, है ॥ ३० ॥ और मधुर है, श्वास कासका नाशक, गरम, हलका, अग्निका दीपन करनेवाला है. अथ शालिपर्णी(सरिवन)नामगुणाः. शालिपर्णी स्थिरा सौम्या त्रिपर्णी पीवरी गुहा ॥३१॥ विदारिगन्धा दीर्घाङ्गी दीर्घपात्रांशुमत्यपि । शालिपी गुरुच्छर्दिज्वरश्वासातिसारजित् ॥३१॥ शोषदोषत्रयहरी बृंहण्युक्ता रसायनी। तिक्ता विषहरी स्वादुः क्षतकासकमिप्रणुत् ॥ ३३ ॥ टीका-शालिपर्णी, स्थिरा, सौम्या, त्रिपर्णी, पीवरी, गुहा ॥ ३१ ॥ विदारिगंधा, दीर्घाङ्गी, दीर्घपत्रा, अंशुमती, ये सरवनके नाम हैं. ये भारी है और वमन, ज्वर, श्वास, तथा अतीसारको हरनेवाला है ॥ ३२ ॥ शोप, त्रिदोष, इनका हरनेवाला है, और धातुओंका पुष्ट करनेवाला, और रसायन तिक्त और विषका नाशक, मधुर, क्षत, कास, और कमी, इनका हरनेवाला है. इसका नाम शालिपर्णी प्रसिद्ध है ॥ ३३॥ अथ एश्चिपर्णी(पिठवन)नामगुणाः. एनिपर्णी पृथक्पर्णी चित्रपर्ण्यहिपर्ण्यपि। For Private and Personal Use Only
SR No.020370
Book TitleHarit Kyadi Nighant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRangilal Pandit, Jagannath Shastri
PublisherHariprasad Bhagirath Gaudvanshiya
Publication Year1892
Total Pages370
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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