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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३८ हरीतक्यादिनिघंटे हिचकी, कास, ज्वर, इनकों हरनेवाली है. और घाव, उरःक्षत, विसर्प, कृमि, और कुष्ठ, इनकोंभी हरनेवाली है || १९६ ।। और लाही गुणोंमें इसीके बराबर है, परंतु विशेषकरके व्यङ्गकी नाशक होती है. अथ हरिद्रानामगुणाः. हरिद्रा काञ्चनी पीता निशाख्या वरवर्णिनी ॥ १९७ ॥ मना हलदी योषित्प्रया हृद्या विलासिनी । हरिद्रा कटुका तिक्ता रूक्षोष्णा कफपित्तनुत् ॥ १९८ ॥ वर्ण्य त्वग्दोषमेहास्त्रशोथपाण्डुव्रणापहा । ठीका - हरिद्रा १, कांचनी २, पीता ३, निशाख्या ४, वरवर्णिनी ५, ॥ १९७ ॥ कृमिघ्ना ६, हलदी ७, योषित्प्रिया ८, हृद्या ९, विलासिनी १०, ये ह लदीके नाम हैं. ये कडवी, तिक्त, रूखी, और गरम, तथा कफपित्तकी नाशक है ॥ १९८ ॥ वर्णों अच्छा करती है, त्वचाके दोषोंकों और प्रमेहकों तथा रक्तशोथ, पांडु, और घावोंकों हरनेवाली है. अथ कर्पूरहरिद्रानामगुणाः. दावभेदात्रगन्धा च सुरभी दारुदारुच ॥ १९९॥ कर्पूरा पद्मपत्रा स्यात्सुरीमत् सुरतारिका । टीका-दावभेदा १, असगंधा २, सुरभी ३, दारुदारु ४ ॥ १९९ ॥ कपूरा ५, पद्मपत्रा ६, सुरीमत् ७, सुरतारका ८, ये कर्पूरहलदी के नाम हैं. अथ वनहलदीनामगुणाः. अरण्यहलदीकन्दः कुष्ठवातास्त्रनाशनः ॥ २०० ॥ आम्रगन्धिर्हरिद्रा या सा शीता वातला मता । पित्तन्मधुरा तिक्ता सर्वकण्डूविनाशिनी ॥ २०१ ॥ टीका – अरण्यहलदीकन्द अर्थात् वहलदी कुष्ठु और वातरक्तकों हरनेवाली है || २०० || और कर्पूरहलदी शीतल है, वातकों पैदा करनेवाली होती है. और पित्तकों हरनेवाली है, और मधुर है, तिक्त है, और खुजलीको हरनेवाली है ।। २०१ ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020370
Book TitleHarit Kyadi Nighant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRangilal Pandit, Jagannath Shastri
PublisherHariprasad Bhagirath Gaudvanshiya
Publication Year1892
Total Pages370
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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