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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ३६ हरीतक्यादिनिघंटे अथ पाषाणभेदनामगुणाः. पाषाणभेदोऽर्शनी गिरिभिद्भिन्नयाजनी | अश्मभेदो हिमस्तिक्तः कषायो बस्तिशोधनः ॥ १८६ ॥ भेदनो हन्ति दोषार्शोगुल्मकृच्छ्राश्महद्भुजः । योनिरोगान्प्रमेहांश्च प्लीहशूलवणानि च ॥ १८७ ॥ टीका - पाषाणभेदक ?, अश्मन्न २, गिरिभित् ३, भिन्नयाजनी ४ ये पाषाणभेदके नाम हैं. ये शीतल, तिक्त, कसेला, मूत्राशयकों शोधन करनेवाला है ॥ १८६ ॥ और भेदन, तथा दोष, बवासीर, गुल्म, मूत्रकृच्छ्र, पथरी, हृदयकी पीड़ा, योनिरोग, प्रमेह, प्लीह, शूल, घाव, इन सबकों हरनेवाला है ।। १८७ ॥ ( और ग्रंथों में पाषाणभेद १, पाषाण २, अश्मभेद ३, अश्मभेदक ४, शिलाभेद ५, पद ६, नगभिन्नक ७, ये नाम पाषाणभेदके विशेष कहे हैं.) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अथ धातकी (धावई ) नामगुणाः. धातकी धातुपुष्पी च ताम्रपुष्पी च कुंजरा । सुभिक्षा बहुपुष्पी च वह्निज्वाला च सा स्मृता ॥ १८८ ॥ धातकी कटुका शीता मृदुरुत्तुवरा लघुः । तृष्णातीसारपित्तास्त्रविषकृमिविसर्पजित् ॥ १८९ ॥ टीका - धातकी १, धातुपुष्पी २, ताम्रपुष्पी ३, कुंजरा ४, मुभिक्षा ५, बहुपुष्प ६, वह्निज्वाला ७, ये धक्के नाम हैं ॥ १८८ ॥ यह धावई कडवी, और शीतल, तथा मुलायम करनेवाली, कसेली, हलकी होती है. तृषा, अतीसार, रक्तपित्त, विष, कृमि, तथा विसर्प इनको हरनेवाली है ॥ १८९ ॥ अथ मंजिष्ठनामगुणाः. मञ्जिष्ठा विकसा जिंगी समङ्गा कालमेषिका । मण्डूकपर्णी मण्डीरी भण्डी योजनवल्लयपि ॥ १९० ॥ रसायन्यरुणा काला रक्ताङ्गी रक्तयष्टिका । भण्डीतकीच गण्डीरी मञ्जूषा वस्त्ररञ्जिनी ॥ १९१ ॥ ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020370
Book TitleHarit Kyadi Nighant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRangilal Pandit, Jagannath Shastri
PublisherHariprasad Bhagirath Gaudvanshiya
Publication Year1892
Total Pages370
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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