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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हरीतक्यादिवर्गः । ३५ टीका - शृंगी १, कर्कटशृंगी २, कुलीर ३, विषाणिका ४, अजगी ५, वका ६, कर्कटा ७, ये काकडाशींगीके नाम हैं ॥ १८० ॥ ये कसेली, तिक्त, कफ, वात, क्षय, और ज्वरोंकों हरनेवाली है. और श्वास, ऊर्ध्ववात, तृषा, कास, हिचकी, अरुचि, तथा वमन, इनकोंभी हरनेवाली कही है ॥ १८१ ॥ अथ कट्फलनामगुणाः. कट्फल: सोमवल्कश्च कैटर्यः कुम्भिकापि च । श्रीपर्णिका कुमुदिका भद्रा भद्रवतीति च ॥ १८२ ॥ कट्फलस्तुवरस्तिक्तः कटुर्वातकफज्वरान् । हन्ति श्वासप्रमेहार्शः कासकण्ठामयारुचीः ॥ १८३ ॥ टीका - कट्फल १, सोमवल्क २, कैटर्य ३, कुंभिका ४, श्रीपर्णिका ५, कुमुदिका ६, भद्रा ७, भद्रवती ८, ये कायफलके नाम हैं ॥ १८२ ॥ ये कसेला होता है, और तिक्त, तथा कडवा होता है. वात, कफ, तथा ज्वरोकों हरनेवाला है. और श्वास, प्रमेह, ववासीर, कास, कंठरोग, और अरुचि, इनकों हरनेवाला है ॥ १८३ ॥ अथ भांगनामगुणाः. भांग भृगुभवा पद्मा फञ्जी ब्राह्मणयष्टिका । भांगी रूक्षा कटुस्तिक्ता रुच्योष्णा पाचनी लघुः ॥ १८४ ॥ दीपनी तुवरा गुल्मरक्तजं नाशयेद्ध्रुवम् । शोथकासकफश्वासपीनसज्वरमारुतान् ॥ १८५ ॥ टीका - भांग १, भृगुभवा २, पद्मा ३, फंजी ४, ब्राह्मणयष्टिका ५, ये भांगके नाम हैं. ये रूखी होती है. तथा कडवी, तिक्त, और रुचिकों करनेवाली होती है, और गरम, पाचन, तथा हलकी होती है ॥ १८४ ॥ और दीपन, तथा कसेली होती है, और रक्त से उत्पन्न भये वायगोलाकों निश्चय हरती है, और शोथ, कास, कफ, श्वास, पीनस, तथा ज्वर, वायु, इनकों भी हरनेवाली है ।। १८५ ॥ और अन्यग्रंथों में कासनी १, भार्गपणिनी (?) २, परशाक ३, शुक्रमाता ४, ये चार नाम भांग विशेष लिखे हैं. For Private and Personal Use Only
SR No.020370
Book TitleHarit Kyadi Nighant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRangilal Pandit, Jagannath Shastri
PublisherHariprasad Bhagirath Gaudvanshiya
Publication Year1892
Total Pages370
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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