SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 284
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तामवर्गः । २६७ तनें कुसरा कहा है || १० || खिचडी शुक्रकों करनेवाली बलके हित भारी पित्त कफकों देनेवाली और दुर्जर बुद्धि विष्टंभ मलकों करनेवाली कही है ॥ ११ ॥ हरदीके साथ घृतमें उडदकी वडियोंकों भूनेविनधोय चावलोकोंभी साथही भूने ॥ १२ ॥ उस्में पकनेके अंदाजसें जल डालकर चतुर पकावै लवण आर्द्रक हींग उस्में हिसाबसें डालै ॥ १३ ॥ इस सिद्धहईकों पंडितोंनें तायरी कहा है तायरी बaai देनेवाली शुक्र करनेवाली है और कफकों करती है ॥ १४ ॥ बृंहण तपण रुचि करनेवाली भारी पित्त हरती है. अथ क्षीर तथा सवयीमंडगुणाः. पायसं परमान्नं स्यात्क्षीरिकापि तदुच्यते । शुद्धेऽर्धपके दुग्धे तु घृताक्तांस्तण्डुलान्पचेत् ॥ १५ ॥ ते सिद्धा क्षीरिका ख्याता स सिताज्ययुतोत्तमा । क्षीरका दुर्जरा प्रोक्ता बृंहणी बलवर्धिनी ॥ १६ ॥ नालिकेरं तुनूत्य च्छिन्नं पयसि गोः क्षिपेत् । सितागव्याज्यसंयुक्ते तत्पचेन्मृदुनाऽग्निना ॥ १७॥ नारीरोद्भवा क्षीरी स्निग्धा शीतातिपुष्टिदा । गुर्वी सुमधुरा वृष्या रक्तपित्तानिलापहा ॥ १८ ॥ समितां वर्त्तिकां कृत्वा सूक्ष्मां तु यवसन्निभाम् । शुष्का क्षीरेण संसाध्या भोज्या घृतसितान्विता ॥ १९ ॥ सेविका तर्पणी बल्या गुर्वी पित्तानिलापहा । ग्राहिणी सन्धिकच्या तां खादेन्नातिमात्रया ॥ २०॥ गोधूमा धवला धौताः कुट्टिताः शोषितास्ततः । प्रोक्षिता यन्त्रनिष्पिष्टाश्चालिताः समिताः स्मृताः ॥ २१ ॥ वारिणां कोमला कृत्वा समितां साधु मर्दयेत् । हस्तलालनया तस्या लोप्त्रीं सम्यक् प्रसारयेत् ॥ २२ ॥ अधोमुखघटस्यैतद्विस्तृतं प्रक्षिपेद्वहिः । For Private and Personal Use Only
SR No.020370
Book TitleHarit Kyadi Nighant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRangilal Pandit, Jagannath Shastri
PublisherHariprasad Bhagirath Gaudvanshiya
Publication Year1892
Total Pages370
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy