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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २५८ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हरीतक्यादिनिघंटे घोटके पीतितुरगतुरङ्गाच तुरङ्गमाः ॥ ८७ ॥ वाजिवाहार्वगन्धर्वयहसैन्धवसतयः । अश्वमांसं तु तुवरं वह्नित्कफपित्तलम् ॥ ८८ ॥ वातबृंहणं बल्यं चक्षुष्यं मधुरं लघु I महिषो घोटकारिः स्यात्कासरश्च रजस्वलः ॥ ८९ ॥ पीनस्कन्धः कृष्णकायो लुलायो यमवाहनः । महिषस्यामिषं स्वादु स्निग्धोष्णं वातनाशनम् ॥ ९० ॥ निद्राशुक्रप्रदं वल्यं तनुदाढर्यकरं गुरु । वृष्यं च सृष्टविण्मूत्रं वातपित्तास्रनाशनम् ॥ ९१ ॥ टीका - बलीवर्द वृषभ ऋषभ तथा वृष अनवान सौरभेय अल्पगौ उक्षाभद्र यह बैलके नाम हैं ॥ ८५ ॥ सुरभी सौरभेयी माहेयी गौ यह गायके नाम हैं गौमांस भारी चिकना पित्तकफकों बढानेवाला है || ८६|| और पुष्ट वातहरता बलकों करनेवाला अहित और पीनसकों हरता है घोडाके नाम कहते हैं घोटक पीति तुरग तुरङ्गम ॥ ८७ ॥ वाजि वाह अर्व गंधर्व यह सैन्धव सप्ति यह घोडेके नाम हैं घोडेका मांस सेला दीपन कफपित्तकों करनेवाला है ॥ ८८ ॥ वात हरता बृंहण बलके हित नेत्रके हित मधुर हलका है भैंसा के नाम कहते हैं महिप घोटकारि कासार रजस्वल८९ पीनस्कन्ध कृष्णकाय लुलाय यमवाहन यह भैंसके नाम हैं भैंसाका मांस मधुर चिकना गरम वातहरता है ॥ ९० ॥ और निद्रा शुक्रकों करनेवाला बलके हित शरीरकों दृढ करनेवाला भारी शुक्रकों करनेवाला और मलमूत्रकों करनेवाला वात रक्त पित्त इनकों हरता है ॥ ९१ ॥ अथ मण्डूककच्छपगुणाः. मण्डूकः लवगो भेको वर्षाभूर्दर्दुरो हरी । मण्डूकः श्लेष्मलो नातिपित्तलो बलकारकः ॥ ९२ ॥ कच्छपो गूढपात्कूर्मः कमठो दृढष्टष्ठकः । कच्छपो बलदो वातपित्तनुत्पुंस्त्वकारकः ॥ ९३ ॥ सद्योहतस्य मांसं स्यात् व्याधिघाति यथाऽमृतम् । For Private and Personal Use Only
SR No.020370
Book TitleHarit Kyadi Nighant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRangilal Pandit, Jagannath Shastri
PublisherHariprasad Bhagirath Gaudvanshiya
Publication Year1892
Total Pages370
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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