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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मांसवर्गः । २५७ करनेवाला भारी है और स्रोतोंकों शुद्ध करनेवाला बलके हित मांसकों करनेवाला वातपित्तकों हरता कहा है || ७९ ॥ वृद्धछागका मांस वातल रूखा तथा रोगसें मरे - हुवेका मांसभी वैसेही होता है बकरीका शिर जत्रुके ऊपर होनेवाले रोगकों हरता और रुचिकों करनेवाला है ॥ ८० ॥ अथ मेषटुंबांडक. मेट्रो मेढो हुंडमेष उरणोऽप्येडकोऽपि च । अविवृष्टिस्तथोर्णायुः कथ्यन्ते तद्गुणा अथ ॥ ८१ ॥ मेषस्य मांसं पुष्टं स्यात्पित्तश्लेष्मकरं गुरु । तस्यैवाण्डविहीनस्य मांसं किंचिल्लघु स्मृतम् ॥ ८२ ॥ डुम्बाण्डः पृथु शृङ्गः स्यान्मेदः पुच्छस्तु डुम्बकः । ष्टथुश्टङ्गः एडकस्य पलं ज्ञेयं मेषामिषसमं गुणैः ॥ ८३ ॥ मेदः पुच्छोद्भवं मांसं हृद्यं वृष्यं भ्रमापहम् । पित्तश्लेष्मकरं किंचिद्वातव्याधिविनाशनम् ॥ ८४ ॥ टीका - मेदू मेढ हुड मेष उरणाण्डकभी अविदृष्टी तथा ऊर्णायु यह मेsh नाम है अब उस्के गुण कहते हैं ॥ ८१ ॥ मेंढेका मांस पुष्ट होता है और पित्तकफकों करनेवाला भारी है अंडरहित उस्का मांस किंचित हलका कहा है ॥ ८२ ॥ दुम्बाण्डक पृथुशृङ्ग मेदपुच्छदुम्बक यह दुम्बेके नामहैं दुम्बेका मांस मेंढके मांस के समान गुणमें जानना चाहिये ॥ ८३ ॥ उसके दुम्बका मांस हृद्य शुक्रकों उत्पन करनेवाला श्रम हरता है और पित्त कफकों करनेवाला तथा कुछएक वातके रोhi हरता है || ८४ ॥ अथ बलीवर्दाश्वमहिषनामगुणाः, बलीवर्दस्तु वृषभ ऋषभश्च तथा वृषः । अनड्डान् सौरभेयोल्पगौरूक्षाभद्र इत्यपि ॥ ८५॥ सुरभिः सौरभेयी च माहेयी गौरुदाहृता । गोमांसं तु गुरु स्निग्धं पित्तश्लेष्मविवर्धनम् ॥ ८६ ॥ बृंहणं वातहृद्दल्यमपथ्यं पीनसप्रणुत् । ३३ For Private and Personal Use Only
SR No.020370
Book TitleHarit Kyadi Nighant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRangilal Pandit, Jagannath Shastri
PublisherHariprasad Bhagirath Gaudvanshiya
Publication Year1892
Total Pages370
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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