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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २२८ हरीतक्यादिनिघंटे और शुक्रकों करनेवाली तथा रक्तपित्तकों हरनेवाली है और बलकों देनेवाली है रुचिकों करनेवाली पथ्य पुष्ट तथा तृप्तिकों करनेवाली है ॥ ९ ॥ सुफेद मरसा और सालमरसा नवडा इसप्रकारभी कहते हैं मारिष वृष्यक मार्ष यह मरसेके नाम हैं। वोह लाल और सफेद कहा है मरसा मधुर शीतल विष्टंभ करनेवाला पित्तकों हरता भारी है ॥ १० ॥ वातकफकों करनेवाला रक्तपित्तकों हरता विषम अग्निकों हरनेवाला है लाल मरसा बहुत भारी नहीं होता और क्षीरके सहित मधुर सर होताहै ॥ ११॥ और कफकों करनेवाला पाकमें कटु और अल्पदोष करनेवाला कहा है ॥ अथ तण्डुलीय तथा पलक्यानामगुणाः. तण्डुलीयो मेघनादः काण्डेरस्तण्डुलेरकः ॥ १२ ॥ भण्डीरस्तण्डुलीबीजो विषघ्नश्चाल्पमारिषः । तण्डुलीयो लघुः शीतो रूक्षः पित्तकफास्रजित् ॥ १३ ॥ सृष्टमूत्रमलो रुच्यो दीपनो विषहारकः । पानीयं तण्डुलीयं तु कचटं समुदाहृतम् ॥ १४॥ कचटं तितकं रक्तपित्तानिलहरं लघु । पलक्या वास्तुकाकाराच्छुरिका चीरितच्छदा ॥ १५॥ पलक्या वातला शीता श्लेष्मला भेदिनी गुरुः । विष्टम्भिनी मदश्वासपित्तरक्तकफापहा ॥ १६॥ टीका - छोटा मरुसा इसप्रकार कहते हैं तंडुलीय मेघनाद काण्डेर तंडुलेरक मंडीर तंडुलीवीज विपन अल्पमारिष येह चवराईके नामहैं । १२ ॥ चवराई हलकी शीतल रूखी पित्त कफ रक्त इनकों हरनेवाली है और मल मूत्रकों करनेवाली रुचिकों करनेवाली दीपन विषहरती है ॥ १३ ॥ दूसरे किस्मकी चवराई पनियाचवराई शास्त्रमें कट इसनामसें प्रसिद्ध है पानीय तंडुलीयक कचट इसप्रकार कहा है पनीया चवराई तिक्त रक्त पित्त और वात इनकों हरती हलकी होती है ॥ १४ ॥ पलक्या वास्तुकाकारा अर्थात् वथुवेकीसी च्छुरिका चीरितच्छदा यह पालकके नामहैं पालक वातकों करनेवाला शीतल कफकों करनेवाला भेदन भारी है ॥ १५ ॥ और विष्टम्भकों करनेवाला तथा मद श्वास पित्त रक्त कफ इनकों हरता है || १६॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020370
Book TitleHarit Kyadi Nighant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRangilal Pandit, Jagannath Shastri
PublisherHariprasad Bhagirath Gaudvanshiya
Publication Year1892
Total Pages370
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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