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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शाकवर्गः। सरं प्लीहास्त्रपित्ताश कमिदोषत्रयापहम् ॥७॥ टीका-पत्र फूल फल नाल कन्द तथा संखेदज इसप्रकार छह प्रकारका साग कहाहै उनमें यथोत्तर भारी जानने ॥१॥ अब शाकोंके गुण प्रायसें सब शाक विष्टम्भी और भारीहैं तथा रूखे बहुत मलकों करनेवाली हैं ॥२॥ साग शरीर अ. स्थिकों भेदन करताहै और नेत्रकों हरताहै तथा वर्णकों हरताहै और रक्त तथा शुक्रकोंभी हरताहै बुद्धिका क्षयभी करताहै सिरके वालधौलेभी होतेहैं और स्मृति तथा मतिकोंभी हरताहै ऐसा उस्के जतनेवालोंने कहाहै ॥ ३ ॥ सब सागोंमें रोग वसतेहैं वेह देहनाशके कारण हैं इसवास्ते बुद्धवान् साग न सेवन करै वैसेही अम्लमेंभी वोही दोष है ॥ ४॥ यह सागकी निन्दाके सामान्य वचनहै अब शाकमें विशेषवचनकों कहतेहैं उस्में पत्रशाक उनमेंभी दोनों वथुनीके और गुण कहतेहैं वास्तूक और वास्तुकभी होताहै क्षारपत्र शाकराट् यह वथुवेके नामहैं वोही बडेपत्तेका लाल होताहै उस्कों गौडवास्तुक कहते हैं ॥५॥ प्रायः जवके वीचमें होताहै इ. सवास्ते जक्शाक कहाहै दोनों वथुवे मधुर क्षार पाकमें कडवे कहेहै ॥ ६ ॥ और दीपन पाचन रुचिकों करनेवाले हलका शुक्र बलकों दैनेवाले हैं सर पिलही रक्तपित्त ववासीर कृमि तीनोंदोष इनकों हरताहै ॥ ७ ॥ __ अथ पोतकीनामगुणाः. पोतक्युपोदिका सा तु मालवामृतवल्लरी । पोतकी शीतला स्निग्धा श्लेष्मला वातपित्तनुत् ॥ ८॥ अकण्ठ्या पिच्छिला निद्रा शुक्रदा रक्तपित्तजित् । बलदा रुचिरुत्पथ्या बृंहणी तृप्तिकारिणी ॥ ९॥ मारिषो बाष्पको मार्षः श्वेतो रक्तश्च स स्मृतः । मारिषो मधुरः शीतो विष्टम्मो पित्तनुद्गुरुः ॥१०॥ वातश्लेष्मकरो रक्तपित्तनुद्विषमाग्निजित् । रक्तमाषो गुरु ति सक्षारो मधुरः सरः ॥ ११ ॥ श्लेष्मलः कटुकः पाके स्वल्पदोष उदीरितः। टीका-पोतकी उपोदिका मालवा अमृतवल्लरी यह पोईके नामहैं पोई शीतल चिकनी कफकों करनेवाली वातपित्तकों हरतीहै ॥ ८॥ कंठके हित पिच्छिल निद्रा For Private and Personal Use Only
SR No.020370
Book TitleHarit Kyadi Nighant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRangilal Pandit, Jagannath Shastri
PublisherHariprasad Bhagirath Gaudvanshiya
Publication Year1892
Total Pages370
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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