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धातुरसरत्नविषवर्गः। गोस्तनाभफलो गुच्छस्तालपत्रच्छदस्तथा । तेजसा यस्य दह्यन्ते समीपस्था द्रुमादयः॥ १८६ ॥ असौ हालाहलो ज्ञेयः किष्किंधायां हिमालये।
दक्षिणाब्धितटे देशे कोङ्कणेऽपि च जायते ॥ १८७॥ टीका-सुराष्ट्रदेशमें जो होताहै वो सौराष्ट्रिक कहाहै सिंगियाका स्वरूप जिसकों गायके सींगमें बांधनेसें दुग्ध लाल होताहै उस्कों द्रव्यके तत्वोंके जाननेवालोंने शृङ्गिक कहाहै ॥ १८३ ॥ देवता और दानवके युद्धमे देवताओंसें मारेगये पृथुमालीनामदैत्यके रुधिरसे पीपलके समान वृक्ष उत्पन्न हुवा ॥ १८४ ॥ इस्के गोंदकों कालकूट ऐसा मुनिओंने कहाहै वोह शृङ्गवेर क्षेत्रमें और कोङ्कणदेश तथा मलयाचलमें होताहै ॥१८५॥ गायके स्तनकेसे फलोंके गुच्छे तथा तालपत्रके समान पत्र होतेहैं और जिसके तेजसें पासके वृक्षादिक जलजातेहैं ॥ १८६ ॥ इस्कों हालाहल जानना चाहिये और यह किष्किन्धामें हिमालयमें दक्षिणसमुद्रके किनारेपरके देशोंमें और कोङ्कणदेशमेंभी उत्पन्न होताहै ॥ १८७॥
अथ ब्रह्मपुत्रस्य स्वरूपम् । वर्णतः कपिलो यः स्यात्तथा भवति सारतः। ब्रह्मपुत्रः स विज्ञेयो जायते मलयाचले ॥ १८८ ॥ ब्राह्मणः पाण्डुरस्तेषु क्षत्रियो लोहितप्रभः। वैश्यः पीतः सितः शूद्रो विष उक्तश्चतुर्विधः ॥ १८९ ॥ रसायने विषं विप्रं क्षत्रियं देहपुष्टये । वैश्यं कुष्ठविनाशाय शूद्रं दद्याधाय हि ॥ १९०॥ विषं प्राणहरं प्रोक्तं व्यवायि च विकाशि च ।
आग्नेयं वातकफहृद्योगवाहि मदावहम् ॥ १९१ ॥ टीका-जो रंगसें कपिल सथा सारसे कपिल होताहै उस्कों ब्रह्मपुत्र जानना चाहिये वोह मलयाचलमें होताहै १८८ उस्में ब्राह्मणजातिका श्वेत लाल क्षत्रिय पीला वैश्य और काला शूद्र ऐसे विष चारप्रकारका कहाहै ॥ १८९ ॥ रसायनमें सफेद शरीरकी पुष्टिके अर्थ लाल पीला कुष्ठनाशके अर्थ और काला मरणके अर्थ देवै
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