SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 183
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १६६ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हरीतक्यादिनिघंटे स्त्रिन्धं गुरु च तिक्तं च वातपित्तापहं स्मृतम् ॥ ७५ ॥ शुष्कं भेद्यग्निकृत्सर्वं लघु तृष्णाकमास्त्रजित् । कोल वेरका वीज रुचिकों करनेवाला गरम वातकों करनेवाला है ॥ ७३ ॥ और कफ, पित्तकों करनेवाला भारी सारक कहा है. पहिले विद्वानोंनें छोटेवेरकों कर्कन्धू ऐसा कहा है ॥ ७४ ॥ छोटा वेर खट्टा, कसेला, और थोडा मीठा होता है और चिकना, भारी, तिक्त, वातपित्तकों हरता कहाहै ॥ ७५ ॥ तथा सूखा भेदनकरनेवाला और अग्निकों करनेवाला है और सब इसके होते है तथा तृषा, कृमि, रक्त, इनकों हरनेवाला है. अथ प्राचीनामलक तथा लवलीनामागुणाः. प्राचीनामालकं लोके प्राचीनामलकं स्मृतम् ॥ ७६ ॥ प्राचीनामलकं दोषत्रयजिद् ज्वरघाति च । सुगन्धमूला लवली पाण्डुः कोमलावल्कला ॥ ७७ ॥ लवलीफलमइमार्शः कफपित्तहरं गुरु । विशदं रोचनं रूक्षं स्वाद्वम्लं तुवरं रसे ॥ ७८ ॥ टीका - प्राचीनामालककों लोकमें प्राचीनामलक कहा है || ७६ || प्राचीनामलक त्रिदोषकों हरनेवाला और ज्वर हरता है. अब हरफरे बडी ये सुगन्धमूला लवली पांडुकोमल वल्कला येह हरफारे बडीके नाम हैं ॥ ७७ ॥ हरफरीका फल पथरी और ववासीर, कफ, पित्त, इनको हरता भारी विशद, रोचन, रूखा, मधुर, खट्टा, और कसैला, रसमें होता है ॥ ७८ ॥ अथ करमर्द ( करोंदा) नामगुणाः. करमर्दः सुषेणः स्यात्कृष्णपाकफलस्तथा । तस्माल्लघुफला या तु सा ज्ञेया करमर्दका ॥ ७९॥ करमर्दद्वयं त्वाममम्लं गुरु तृषाहरम् । उष्णं रुचिकरं प्रोक्तं रक्तपित्तकफप्रदम् ॥ ८० ॥ तत्पक्कं मधुरं रुच्यं लघुपित्तसमीरजित् । टीका -- करमर्द, सुषेण, कृष्णपाकल, यह करोंदा के नाम हैं और छोटेकों For Private and Personal Use Only
SR No.020370
Book TitleHarit Kyadi Nighant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRangilal Pandit, Jagannath Shastri
PublisherHariprasad Bhagirath Gaudvanshiya
Publication Year1892
Total Pages370
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy