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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १५९ आम्रादिफलवर्गः। कफवह्निकरं रुच्यं वृष्यं विष्टम्भकं च तत् ॥ ३१॥ टीका-लकुच क्षुद्रपणस लिकुच डहु इतने नाम वडहलके हैं. कच्चा वडहल गरम भारी विष्टम्भको करनेवाला है ॥ २९॥ और मधुर तथा खट्टा तीनोंदोषोंकों और रक्तकों करनेवाला है और शुक्र तथा अग्निकों हरता और नेत्रोंके अहित कहाहै ॥३०॥ और अच्छेप्रकार पका हुवा खट्टा और मीठा होता है तथा वातपित्तकों हरनेवाला है और कफ अग्निकों करनेवाला रुचिके हित शुक्रकों करनेवाला और विष्टम्भक है ॥ ३१॥ अथ कदलीनामगुणाः. कादली वारणा मोचांबुसारांशुमतीफला । मोचाफलं स्वादु शीतं विष्टम्भि कफनुगुरु ॥ ३२॥ स्निग्धं पित्तात्रतृट्दाहक्षतक्षयसमीरजित् । पक्कं स्वादु हिमं पाके स्वादु वृष्यं च बृंहणम् । क्षुत्तृष्णानेत्रगदहन्मेदोघ्नं रुचिमांसकृत् ॥३३॥ माणिक्यमामृतचम्पकाद्या मेदाः कदल्या बहवोऽपि सन्ति । उक्ता गुणास्तेष्वधिका भवन्ति निर्दोषता स्याल्लघुता च तेषाम् ॥३४ टीका-कदली, वारणा, मोचा, अम्बुसारा, अंशुमतीफला, यह केलेके नाम हैं. केला मधुर, शीतल, विष्टंभ करनेवाला, कफहरता, भारी है ॥ ३२॥ और चिकना पित्त, रक्त, तृषा दाहकों हरता और क्षत, क्षय, वात, इनको हरनेवालाहै. पका हुवा शीतल, मधुर, और पाकमें मधुर शुक्रकों करनेवाला और पुष्ट है. क्षुधा, तृषा, नेत्ररोग इनकों हरता प्रमेहकों हरता तथा रुचि और मांसकों करनेवाला है॥३३॥ माणिक्य मर्त्य अमृत चंपक आदि केलेके बहुत भेद हैं उन्में यह कहेहुए गुणोंमें आधिकहै और उन्में निर्दोषता तथा लघुता है ॥ ३४ ॥ अथ चिर्भटनामगुणाः. चिर्भटं धेनुदुग्धं च तथा गोरक्षकर्कटी। चिर्भ मधुरं रूक्षं गुरु पित्तकफापहम् ॥ ३५॥ अनुष्णं ग्राहि विष्टम्भि पक्कं तूष्णं च पित्तलम्। For Private and Personal Use Only
SR No.020370
Book TitleHarit Kyadi Nighant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRangilal Pandit, Jagannath Shastri
PublisherHariprasad Bhagirath Gaudvanshiya
Publication Year1892
Total Pages370
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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