SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 135
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११८ हरीतक्यादिनिघंटे काकजंघा तिक्त, शीतल, कसेली, कफपित्तकों हरती है ।। २५१ ।। और ज्वर, पित्त, रक्त, कृमि, कण्डू, विष, इनकों हरती है, अथ नागपुष्पी नामगुणाः. नागपुष्पी श्वेतपुष्पा नागिनी रामदूतिका ॥ २५२ ॥ नागिनी रोचनी तिक्ता तीक्ष्णोष्णा कफपित्तनुत् । विनिहन्ति विषं शूलं योनिदोषवमिकमीन् ॥ २५३ ॥ टीका - नागपुष्पी, श्वेतपुष्पा, नागिनी, रामदूतिका, यह नागिनीके नाम हैं, || २५२ || नागिनी रुचिकों करनेवाली, तिक्त, तीखी, उष्ण, कफ पित्तकों हरती है. और विष, शूल, योनिदोष, वमन, कृमि इनकों हरती है ।। २५३ ॥ अथ मेषशृंगी ( मेढासींगी) नामगुणाः. मेषशृङ्गी विषाणी स्यान्मेषवल्लयजशृङ्गिका । मेषशृङ्गी रसे तिक्ता वातला श्वासकासहृत् ॥ २५४ ॥ रूक्षा पाके कटुतिक्ता व्रणश्लेष्माक्षिशूलनुत् । मेषशृङ्गीफलं तिक्तं कुष्ठमेहकफप्रणुत् ॥ २५५ ॥ दीपनं स्रंसनं कासकमिव्रणविषापहम् । टीका - मेषशृंगी, विषाणी, मेषवल्ली, अजभृंगिका, यह मेंढासींगीके नाम हैं, मेढासींगी रसमें तिक्त, वातकों उत्पन्न करनेवाली, श्वास, कासकों हरती है ॥२५४॥ और रूखी, पाकमें कटु, तिक्त, व्रण, कफ, नेत्र, शूल, इनकों हरनेवाली है. मेढासींगीका फल तिक्त है, कुष्ठ, प्रमेह, कफ, इनकों हरता है || २५५ ॥ दीपन, दस्तावर, कास, कृमि व्रण, विष, इनकों हरता है, अथ हंसपादीनामगुणाः. हंसपदी हंसपदी कीटमाता त्रिपादिका ॥ २५६ ॥ हंसपादी गुरुः शीता हन्ति रक्तविषव्रणान् । विसर्पदाहातीसारताभूतानिरोहिणी ॥ २५७ ॥ टीका- हंसपादी, हसपदी, कीटमाता, त्रिपादिका, यह हंसपदीके नाम हैं ॥ २५६ ॥ हंसपदी भारी, शीत, रक्त, विष, व्रणकों हरती है, और विसर्प, दाह, अतीसार, लूता, भूत, अग्नि, रोहिणी, इनकोंभी हरती है ॥ २५७ ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020370
Book TitleHarit Kyadi Nighant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRangilal Pandit, Jagannath Shastri
PublisherHariprasad Bhagirath Gaudvanshiya
Publication Year1892
Total Pages370
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy