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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११३ गहूच्यादिवर्गः । काण्डत्वग्विरहितमस्थि शृङ्खलाया माषार्द्रं द्विदलमकंचुकं तदर्धम् । सम्पिष्टं तदनु ततस्तिलस्य तैले सम्पक्कं वटकमतीव वातहारि २२७ टीका- ग्रन्थिमान्, अस्थिसंहार, वज्रांगी, अस्थिश्रृंखला, अस्थिसंहारक, यह हरसिंघारके नाम हैं, हरसिंघार वातकफकों हरता है, और हड्डियोंकों जोड़नेवाला ॥ २२५ ॥ उष्ण, दस्तावर, कृमिकों, हरता है, ववासीरकों हरता है, नेत्ररोगकों हरनेवाला, रूखा, मधुर, हलका, शुक्रकों उत्पन्न करनेवाला, पाचन, पिasों करनेवाला कहा गया है || २२६ || तालमखाना त्वचासें रहित हरसिंगार - काभी गीला उडद, चुक, उस्सें आधा इनकों पीसकै उस्के पश्चात् उस्को तिलके तेल में पकाया वटक अतिवातकों हरता है ।। २२७ ॥ अथ कुमारी (घीकुवार) नामगुणाः. कुमारी गृहकन्या च कन्या घृतकुमारिका । कुमारी भेदनी शीता तिक्ता नेत्र्या रसायनी ॥ २२८ ॥ मधुरा बृंहणी बल्या वृष्या वातविषप्रणुत् । गुल्मलीहरु दृद्धिकफज्वरहरी हरेत् ॥ २२९ ॥ ग्रन्थ्यग्निदग्धविस्फोटपित्तरक्तत्वगामयान् । टीका - कुमारी, ग्रहकन्या, कन्या, घृतकुमारी, यह बीकुवारके नाम हैं. घीकुवार भेदन, शीत, तिक्त, नेत्रका हित, रसायन ॥ २२८ ॥ मधुर, पुष्ट, बलकों बढानेवाला, शुक्रकों उत्पन्न करनेवाला, वात, विषकों हरता है, गुल्म, वायगोला, ली, तिल्ली, अंडवृद्धि, कफज्वर, इनकों हरता है || २२९ ॥ और ग्रन्थि, अग्निदग्ध, विस्फोट, पित्तरक्त, त्वचाके रोग, इनकों हरता है. अथ श्वेतपुनर्नवानामगुणाः. पुनर्नवा श्वेतमूला शोथनी दीर्घपत्रिका ॥ २३० ॥ कटुः कषायानुरसा पाण्डुघ्नी दीपनी सरा | शोफानिलगरश्लेष्महरी व्रण्योदरप्रणुत् ॥ २३१ ॥ टीका - पुनर्नवा, श्वेतमूला, शोथन्नी, दीर्घपत्रिका, यह सफेद गदहपूरना के 9'3 For Private and Personal Use Only
SR No.020370
Book TitleHarit Kyadi Nighant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRangilal Pandit, Jagannath Shastri
PublisherHariprasad Bhagirath Gaudvanshiya
Publication Year1892
Total Pages370
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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