SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 129
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११० हरीतक्यादिनिघंटे प्रत्यक्पर्णी केशपर्णी कथिता कपिपिप्पली । अपामार्गोऽरुणो वातविष्टम्भी कफत् हिमः ॥ २२१ ॥ रूक्षः पूर्वगुणैन्यूनः कथितो गुणवेदिभिः । अपामार्गफलं स्वादु रसे पाके च दुर्जरम् ॥ २२२ ॥ विष्टम्भि वातलं रूक्षं रक्तपित्तप्रसादनम् । टीका-दूसरा लाल वशिर, वृत्तफल, अपामार्ग ॥ २२० ॥ प्रत्यकपर्णी, केशपर्णी, कपिपिप्पली, यह लाल चिचेरेके नाम हैं. लाल चिचेरा अरुण वातकों वि. टंभ करनेवाला, कफकों करनेवाला, शीतल ॥ २२१ ॥ रूक्ष, और पहलेके गुणोंसें हीनगुणके जाननेवालोंने ऐसा कहा है. चिचेरेका फल रसमें मधुर, और पाकमेंभी मधुर, विदग्ध ॥ २२२ ॥ विष्टंभकों करनेवाला, वातकों करनेवाला, रूखा, रक्तपित्तकों अच्छा करनेवाला होता है. अथ कोकिलाक्ष(तालमखाना)नामगुणाः. कोकिलाक्षस्तु काकेक्षुरिक्षुरः क्षुरकः क्षुरः ॥ २२३ ॥ इक्षुः काण्डेक्षुरप्युक्त इक्षुगन्धेझुवालिका । क्षुरकः शीतलो वृष्यः स्वादम्लः पित्तलस्तथा ॥ २२४ ॥ तिक्तो वातामशोथाश्मतृष्णादृष्ट्यनिलास्त्रजित् । टीका-कोकिलाक्ष, काकेक्षु, इक्षुर, क्षुरक, क्षुर ॥ २२३ ॥ इक्षु, काण्डेक्षु, इक्षुगन्धा, इक्षुवालिका, यह तालमखानेके नाम हैं. तालमखाना शीतल, शुक्रकों उत्पन्न करनेवाला, मधुर, अम्लपित्तकों उत्पन्न करनेवाला ॥ २२४ ॥ तिक्त, आमवात, पथरी, शोथ तृषा, दृष्टिरोग, वातरक्त, इनको हरनेवाला है. अथ ग्रंथि(हडसंघारी)नामगुणाः. ग्रन्थिमानस्थिसंहारी वज्राङ्गी चास्थिशृङ्खला। अस्थिसंहारकः प्रोक्तो वातश्लेष्महरोऽस्थियुक् ॥ २२५ ॥ उष्णः सरः कृमिघ्नश्च दुर्नामनोऽक्षिरोगजित् । रूक्षः स्वादुर्लघुर्वष्यः पाचनः पित्तलः स्मृतः ॥ २२६ ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020370
Book TitleHarit Kyadi Nighant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRangilal Pandit, Jagannath Shastri
PublisherHariprasad Bhagirath Gaudvanshiya
Publication Year1892
Total Pages370
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy