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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हरीतक्यादिनिघंटे इक्ष्वालिकेक्षुगन्धा च तथा पोटगलः स्मृतः ॥ १६१॥ काशः स्यान्मधुरस्तिक्तः स्वदुपाकी हिमः शरः । मूत्रकृच्छ्राइमदाहास्त्रक्षयपित्तजरोगजित् ॥ १६२ ॥ टीका-कास १, कासेक्षु २, इक्षुसर ३, इक्ष्वालिक ४, इक्षुगन्धा ५, पोटगल ६, ये कासके नाम हैं ॥ १६१ ॥ ये मधुर, तिक्त, पाकमें मधुर, शीतल, दस्तावर, मूत्रकृच्छ्र, पथरी, दाह, रक्तक्षय, और पित्तके रोगोंको जीतनेवाली है॥१६२॥ अथ गन्धपटेरनामगुणाः. गुन्द्रः पटेरकोरच्छः शृङ्गवेराभमूलकः। गुन्द्रः कषायो मधुरः शिशिरः पित्तरक्तजित् ॥ १६३ ॥ स्तन्यः शुक्ररजोमूत्रशोधनो मूत्रकृच्छ्रहृत् ॥ एरका गुन्द्रमूला च शिविर्गुन्द्रा शरीति च ॥ १६४ ॥ एरका शिशिरा वृष्या चक्षुष्या वातकोपिनी। मूत्रकृच्छ्राश्मरीदाहपित्तशोणितनाशिनी ॥ १६५॥ टीका-गन्धपटेर १, कोरच्छ २, शृंगवेराभ ३, मूलक ४, ये गंधपटेरके नाम हैं. ये कसेला, मधुर, शीतल, पित्तरक्तकों जीतनेवाला है ॥ १६३ ॥ दूधकों उत्पन्न करता है, शुक्र, रज, मूत्र, इनका शोषक है, और मूत्रकृच्छ्रका नाशक है. ए. रका १, गुंद्रमूला २, शिरा ३, गुन्द्रा ४, शरी ५, ये मोथीके नाम हैं ॥ १६४ ॥ ये शीतल, धातुकों पुष्ट करनेवाली है, नेत्रोंके वातकों प्रकोप करनेवाली है, मूत्रकृच्छ्र, पथरी, दाह, रक्तपित्त, इनको हरनेवाली है ॥ १६५ ॥ अथ कुशानामगुणाः. कुशो दर्भस्तथा बर्हिः सूच्यग्रो यज्ञभूषणः । ततोन्यो दीर्घपत्रः स्यात्क्षुरपत्रस्तथैव च ॥ १६६ ॥ दर्भद्वयं त्रिदोषघ्नं मधुरं तुवरं हिमम् । मूत्रकृच्छ्राइमरीतृष्णा बस्तिरुप्रदरास्वजित् ॥ १६७ ॥ टीका-कुश १, दर्भ २, वहीं ३, सूच्यग्र ४, यमभूषण, ये कुशाके नाम हैं. अब डाभके नाम कहे हैं इसकों दूसरेप्रकारका कुशा दीर्घपत्र १, क्षुरपत्र २, ये डा For Private and Personal Use Only
SR No.020370
Book TitleHarit Kyadi Nighant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRangilal Pandit, Jagannath Shastri
PublisherHariprasad Bhagirath Gaudvanshiya
Publication Year1892
Total Pages370
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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