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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गडूच्यादिवर्गः । १०१ अङ्कुर पाकमें और रसमेंभी कडवा हैं, रूखा, और भारी है, दस्तावर है, कसेला है, कफकारक है, मधुर है, विदाही है, वातपित्तकारक है ॥ १५५ ॥ जो वायुकों अनुलोमन करनेवाले, रूखे, कसेले, कटुपाकवाले, वातपित्तकों करनेवाले, उष्ण, मूत्रकों रोकनेवाले, कफके हरनेवाले हैं ॥ १५६ ॥ अथ नलनामगुणाः. नलः पोटगलः शून्यमध्यश्च धमनस्तथा । नलस्तु मधुरस्तिक्तः कषायः कफरक्तजित् ॥ १५७ ॥ उष्णो हृद्वस्तियोन्यर्तिदाहपित्तविसर्पहृत् । टीका - नल १, पोटगल २, शून्यमध्य २, धमन ४, ये नलके नाम हैं. ये मधुर, तिक्त, कसेला, कफ रक्तकों जीतनेवाला है ॥ १५७ ॥ गरम, हृदय, मूत्राशय, योनि, इनकी पीडा, दाह, पित्त, विसर्प, इनका हरनेवाला है. भद्रमुञ्ज (अथ रामशर, शरपत ) इतिवा. भद्रमुञ्जः शरो बाणस्तेजनश्चक्षुवेष्टनः ॥ १५८ ॥ टीका -- भद्रमुञ्ज १, शर २, वाण ३, तेजन ४, चक्षुवेष्टन ५, ये सरपतेके नाम हैं ॥ १५८ ॥ अथ मुञ्जनामगुणाः, मुञ्ज मुञ्जातको वाणः स्थूलदर्भः सुमेखलः । मुञ्जयं तु मधुरं तुवरं शिशिरं तथा ॥ १५९ ॥ दाहतृष्णाविसर्पाममूत्रकृच्छ्राक्षिरोगजित् । दोषत्रयहरं दृष्यं मेखलासुपयुज्यते ॥ १६० ॥ टीका - मूंज १, मुंजातक २, वाण ३; स्थूलदर्भ ४, सुमेखल ५, ये मूंजके नाम हैं. दोनों मूंज मधुर, कसेला, और शीतल हैं, ॥ १५९ ॥ और दाह, तृषा, विसर्प, मूत्रकृच्छ्र, नेत्ररोग इनकों जीतनेवाला, है तथा तीनी दोषोंकों हरनेवाला है, धातुकों पुष्ट करनेवाला है, और मेखलामें उस्का उपयोग किया जाता है ॥ १६० ॥ अथ काशनामगुणाः. काशः काशेक्षुरुद्दिष्टः सः स्यादिक्षुसरस्तथा । For Private and Personal Use Only
SR No.020370
Book TitleHarit Kyadi Nighant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRangilal Pandit, Jagannath Shastri
PublisherHariprasad Bhagirath Gaudvanshiya
Publication Year1892
Total Pages370
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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