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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २५९ छटा-छनाना छटा-स्त्री० [सं०] शोभा, छवि; दीप्ति, झलक बिजली; छत्ता-पु० मधुमक्खियों, भिड़ों आदिका घर; चकत्ता; छतरी। परंपरा, अविछिन्न शृंखला समूह, ढेर; *लड़ी-'मोतिनकी छत्तीस-वि० तीस और छ । पु० ३६ की संख्या । बिथुरी शुभ छट'-राम । छत्तीसा-पु० नाई। वि० दे० 'छतीसा'। छटेल-वि० बँटा हुआ; चालाक । छत्तीसी-वि० स्त्री० दे० 'छतीसी' । छट्ठी-स्त्री० दे० 'छठी'। छन्न-पु० [सं०] छतरी राजाओंके ऊपर लगायी जानेवाली छठ-स्त्री० पक्षकी छठी तिथि, षष्ठी। राजचिह्नरूप छतरी छत्रक, कुकुरमुत्ता; एक प्रकारका विष । छठवाँ-वि० दे० 'छठा' । -च्छाया-स्त्री० छत्रकी छाया, आश्रय ।-धर,-धारछठाँ, छठा-वि० जो क्रममें पाँचके बाद, छके स्थानपर पु० छत्रधारी, राजा; राजाके ऊपर छत्र लगा रखनेवाला हो । मु० छठे-छमासे-कभी-कभी, बहुत अरसेके बाद । सेवक ।-धारी(रिन)-पु० दे० 'छत्रधर'। -पति-पु० छठी-वि०स्त्री० 'छठा'का स्त्री० रूप (जैसे छठी चीज, छठी राजा; महाराज शिवाजीकी पदवी ।-भंग-पु० राज्यका औरत इ०)। स्त्री जन्मके छठे दिनका स्नान, पूजन, नाश; स्वाधीनताका नाश; ज्योतिषका एक योग जिसका उत्सव । मु०-का दूध याद आना-कठिन मेहनत फल राजनाश माना जाता है । पड़ना। -में न पड़ना-प्रकृतिमें न होना; भाग्यमें | छत्रक-पु० [सं०] छतरी; कुकुरमुत्ता; खुमी; शहदका न होना। छत्ता; शिवमंदिर । छड़-पु०, स्त्री० लोहे, पीतल, बाँस आदिका पतला डंडा छत्री*-स्त्री० महलकी बुजी । जो खिड़की-अँगले आदिमें लगाया जाता है। छत्री(त्रिन)-वि० [सं०] छत्रयुक्त, जो छाता लगाये हो । छडना-स० क्रि० (चावल आदि) छाँटना; * छोड़ना। | प० नाई: दे० 'त्रिय' । छड़ा-पु० चाँदीके तारका बना चूड़ी. जैसा गहना जो छद, छदन-पु० [सं०] आवरण, ढकनेवाली चीज; खाल; पाँवमें पहना जाता है। वि० अकेला, तनहा । गिलाफ, खोल; पत्ता; पंख । छड़िया-पु० दरबान, छड़ीबरदार । छदाम-पु० दुकड़ा, पैसेका चौथा भाग। छडी-स्त्री० बाँस, बैंत, लकड़ी आदिका बना पतला, छोटा छद्म(न)-पु० [सं०] छल, कपट; अपना असली रूप डंडा; पीरोंके मजारपर चढ़ानेकी झंडी। -दार-वि० जो छिपाना; बदला हुआ भेस। -नाम-पु० (स्यूडोनिम) छड़ी लिये हो; सीधी धारियोंवाला (कपड़ा)। पु० छड़ी कोई लेख या पुस्तकादि लिखते समय लेखक द्वारा गृहीत बरदार । -बरदार-पु० चोबदार, असाबरदार। बनावटी नाम । -युद्ध-पु० (शैम फाइट) नकली लड़ाई, छत-स्त्री० मकानकी पक्की पाटन या बालाखानेका पक्का, दिखाऊ युद्ध । -वेश-पु० बनावटी भेस । -वेशी खुला फर्श; वह चादर जो छतके नीचे बाँधी जाय, छत (शिन)-वि० जो भेस बदले हो। गीर । * पु० क्षत, घाव । * अ० अछत, (किसीके) होते, छद्मावरण-पु० [सं०] (कैमूफ्लेज) शत्रुको धोखेमें डालनेके रहते हुए । -गीर-पु. छतके नीचे बाँधनेकी चादर या | लिए विमानों, तोपों आदिको वृक्षोंकी पत्तियों, धूमपटल बाँडनी।गीरी-स्त्री० छतगीर ।-वंत-वि० घायल, आटिमेटम टेना. लाar क्षतवाला। छद्मी(द्मिन)-वि० [सं०] छद्मबेशधारी; कपटी। छतना*-पु० पत्ते जोड़कर बनाया हुआ छाता; मधुमक्खी छन-पु० क्षण, पल; पुण्यकाल । -छबि-स्त्री०बिजली, का छाता । अ० क्रि० रहना। क्षणप्रभा । -दा*-स्त्री० रात्रि बिजली । -भंग*-वि० छतनार(रा) -वि०(पेड़-पौधा) जिसकी डालियाँ, टहनियाँ | क्षणभंगुर । -भर-अ० एक क्षण, जरा देर । दूरतक फैली हों; फैला हुआ। छनक-* पु० एक क्षण । अ० क्षणभर । स्त्री 'छन-छन'छतरी-स्त्री० छाता; पत्तोंका छाता; चॅदोवा; वह बड़ा की आवाज; झनकार; भड़का फुतीं। -मनक-स्त्री० छाता जिसके सहारे सैनिक विमानसे नीचे उतरते हैं। गहनोंकी झनकारः सजधजः ठसक । ईखके पत्तों, सरपत आदिकी बनी हुई छत्राकार मँड़ई; छनकना-अ० क्रि० 'छन-छन' करके उड़ जाना (जलते किसीकी समाधि या चिताके स्थानपर बना हुआ मंडप तवे आदिपर पानीकी बूंदका); झनकार होना भड़कना । कबूतरोंके बैठनेका ठट्टर; डोलीके ऊपरका ठट्टर; बहली छनकाना-स० क्रि० पानीको ऑचपर रखकर उसका कुछ आदिके कमानीदार ढाँचेके ऊपरका आच्छादन; कुकुर- | अंश जलाना; गरम किये हुए बरतन में पानी डालना; मुत्ता, छत्रक । -दार-वि० जिसपर छतरी हो। भड़काना। छता*-पु० छाता। छनछनाना-अ०क्रि० 'छन-छन की आवाज होना झनछति*-स्त्री० दे० 'क्षति' । कार होना । स० क्रि० 'छन-छन' शब्द उत्पन्न करना। छतिया*-स्त्री० दे० 'छाती' । छनना-अ० क्रि० छाना जाना, कड़ाहीमें खौलते धीमें छतियाना-स० कि० छातीसे लगाना, सटाना (बोझ, सिक्त होकर पूरी आदिका निकलना; छोटे-छोटे छिद्रोंसे बंदूकका कुंदा इ०)। होकर निकलना; छिद जाना; मादक पदार्थका सेवन छतिवन-पु० एक पेड़, सप्तपणी । किया जाना। पु० छाननेका साधन, महीन कपड़ेका छतीसा-वि० चालाक, मक्कार। टुकड़ा जिससे दूध, पानी आदि छाना जाय । छतीसी-वि० स्त्री० ढोंग, नखरे करनेमें चतुर, छिनाल । । छनवाना-स० क्रि० छाननेका काम दूसरेसे कराना। छतुरी*-स्त्री० दे० 'छतरी'। छनाना-स० कि० छनवाना; पिलाना (भाँग, शराब इ०)। For Private and Personal Use Only
SR No.020367
Book TitleGyan Shabdakosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmandal Limited
PublisherGyanmandal Limited
Publication Year1957
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size28 MB
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