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चौहत्तर-छटाँक चौहत्तर-वि॰सत्तर और चार । पु०चौहत्तरकी संख्या,७४ ।। क्षय आदि रोगोंकी प्रसिद्ध औषधि है। चौहानं-पु० अग्निकुलवाले क्षत्रियोंकी एक शाखा । च्यावन-पु० [सं०] चुआना, टपकाना; निकाल देना।' चौहैं*-अ० चारों ओर ।
| च्युत-वि० [सं०] चुआ, झड़ा हुआ, क्षरित; गिरा हुआ च्यवन-पु०[सं०] चूना, टपकना, क्षरण (लीकेज); च्युति अपनी जगहसे हटा या हटाया हुआ, स्थानभ्रष्ट; चूका एक ऋषि जिनके विषयमें प्रसिद्ध है कि अश्विनी कुमारोंने | हुआ (कर्तव्यच्युत)। उन्हें च्यवनप्राश खिलाकर बूढ़ेसे जवान बना दिया। च्युति-स्त्री० [सं०] च्युत होना, चूना, झड़ना; अपने -छूट-स्त्री० [हिं०] ,-मोक-पु० किसी द्रव पदार्थके च स्थानसे भ्रष्ट होना, स्खलित होना; चूका लोप (वर्णच्युति)। जाने, बह जाने आदिके बदले में दी जानेवाली छूट । | च्यूँटा-पु० दे० 'चीटा' । -प्राश-पु० आयुर्वेदका एक अवलेह जो श्वास-कास, । च्यौना-पु० घरिया ।
छ-देवनागरी वर्णमालाका सातवाँ व्यंजन ।
वि० छ महीने पर होनेवाला (इम्तहान आदि).। -मुखछंग*-पु० गोद, अंक।
पु० कात्तिकेय । छंगा, छंगू-वि० जिसके किसी पंजेमें छ उँगलियाँ हों। छई-स्त्री० क्षय रोग । वि० क्षय होनेवाला क्षय रोगवाला । छंगुनिया-स्त्री० दे० 'छगुनी' ।
छक-स्त्री० नशा तृप्ति; लालसा । छंगुलिया, छंगुली-स्त्री० दे० 'छगुनी' ।
छकड़ा-पु० सग्गड़, बैलगाड़ी। छछौरी-स्त्री० एक पकवान जो छाँछमें बनाया जाता है।। छकना-अ० क्रि० अघाना, तृप्त होना; नशे में चूर,बदमस्त छटना-अ० कि० छाँटा जाना; चुना जाना; कटना; दूर होना हैरान होना; चकराना; धोखा खाना। होना; अलग होना; बिखरना; क्षीण होना; साफ किया छकाछक-वि० तृप्त ; परिपूर्ण; नशे में चूर । जाना। छटा हुआ-चालाक, धूर्त । मु० छटे-छटे | छकाना-स० क्रि० भरपेट खिलाना, तृप्त करना; खूब नशा फिरना-दूर-दूर रहना।
पिलाकर बदमस्त कर देना; हैरान करना धोखेमें डालना। छटनी-स्त्री० छाँटने, (कर्मचारी आदिको) हटाने की क्रिया। छकीला*-वि० छका हुआ, मस्त । छटवाना-स० क्रि० छाँटनेका काम दूसरेसे कराना। छक्का-पु० छ अवयवोंवाली वस्तु का समूह जुएके चार छंटाई-स्त्री० छाँटनेका काम; छाँटनेकी उजरत; ( कर्मचारी दाँवोंमेंसे एक; ताशका पत्ता जिसपर छ बूटियाँ हों; पासेका आदिको) अलग करनेका काम ।
वह बल जिसमें छ बिदियाँ हों; जुआ; होश। -पंजाछंटाना-स० क्रि० दे० 'छंटवाना' ।
पु० दाँव-पेंच, छल-कपट । मु०-पंजा भूल जाना-उपाय छंटाव-पु० छंटाई।
न चलना, अकलका काम न करना । (छक्के) छुड़ानाछैटेल-वि० ईंटा हुआ, धूर्त; छाँटकर अलग किया हुआ। | हौसला पस्त कर देना, परेशान कर देना । -छटनाछड़ना*-स० क्रि० छोड़ना, त्यागना; छाँटना । अ० क्रि० हिम्मत हारना, हैरान हो जाना। कै करना।
छगड़ा*-पु० बकरा। छंदाना*-स० क्रि० छीनना, दूसरेके हाथसे झपट लेना। छगन-पु० छोटे बच्चोंके लिए प्यारका शब्द; नन्हाँ प्यारा छंदशास्त्र-पु० [सं०] छंद-रचना-संबंधी शास्त्र ।
बच्चा। -मगन-पु० हँसते-खेलते बच्चे, छोटे-छोटे बच्चे। छंद-पु० कलाई पर पहननेका एक गहना; दे० 'छंद(स); | छगनी-स्त्री० कानी उँगली। [सं०] अभिलाष, नियंत्रण, वश्यता; रुचि ।
छछिआ, छछिया-स्त्री० छाँछ नापनेका बरतन । छंद(स)-पु० [सं०] इच्छा; अभिप्राय; धोखा, छल; मात्रा, छंदर-पु० चूहेकी जातिका एक जंतु जिसकी बोलीमें 'छू
वर्ण, यति आदिके नियमोंसे युक्त वाक्य; छंदःशास्त्र । छू की ध्वनि रहती है और देहसे तीव्र गंध निकलती है। छंदोदोष-पु० [सं०] छंदमें वर्ण, मात्राके घट-बढ़ जाने एक आतिशबाजी; निष्प्रयोजन इधर-उधर चलता-फिरता आदिका दोष ।
रहनेवाला व्यक्ति । मु०-छोड़ना-झगड़ा लगाना । छंदोबद्ध-वि० [सं०] पद्यरूपमें रचित, श्लोकबद्ध । छजना-अ० क्रि० शोभा देना, फबना ठीक जान पड़ना। छंदाभंग-पु० [सं०] छंदमें वर्ण, मात्रा आदिके नियमका छजा-पु० छतका दीवारके बाहर निकला हुआ भाग; पूर्ण पालन न होना।
बारजा; दीवार के बाहर निकली हुई पत्थरकी पट्टी। छ:-वि० पाँच और एक । पु० छकी संख्या, ६।
छटंकी-स्त्री० छटाँकका बाट । वि० छोटा, छटपट (बालक)। छ-वि० पाँच और एक । पु० छकी संख्या, ६। -कड़िया छटकना-अ० कि० तेजीके साथ पकड़से निकल जाना, -स्त्री० वह पालकी जिसके ढोने में छ कहार लगें ।-कड़ी हाथसे सरक जाना; काबूसे निकल जाना; दूर-दूर रहना। -स्त्री० छका समूह; छकड़िया पालकी; चारपाईकी वह छटकाना-स० क्रि० झटका देकर बंधन या पकड़से छुड़ा बुनावट जिसमें सुतलीके छ फेरे एक साथ बुने जायँ। लेना, सरकाना। -पद-पु० भ्रमर, घट्पद, भँवरा । -बुंदा-पु० एक छटपटाना-अ०क्रि० व्याकुल होना, तड्पना; आतुर होना। जहरीला कीड़ा जिसकी पीठपर छ बुंदे होते हैं ।-मासी-छटपटी-स्त्री० आकुलता, बेचैनी; छटपटानेका भाव । स्त्री० मृत्युके छ महीने बाद होनेवाला श्राद्ध । -माही- छटाँक, छटाक-स्त्री० एक सेरका सोलहवाँ भाग।
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