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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra दशदिक्पाल ॥ २५ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वायव्य दिक्पाल - हरिणो वाहनं यस्य वायव्याधिपतिर्मरुत् । संघस्य शान्तये सोsस्तु बलिपूजां प्रयच्छतु ॥ ६ ॥ ( वायव्यकोण में बलिवाकुलादि चढावे ) कुबेर दिक्पाल - निधाननवकारूढः उत्तरस्या दिशः प्रभुः । संघस्य शान्तये सोऽस्तु बलिपूजां प्रयच्छतु ॥ ७ ॥ ( उत्तरदिशा की तरफ बलिवाकुलादि चडावे ) ईशानदिक्पाल - सिते वृषेधिरूढव ईशानां च दिशो विभुः । संघस्य शान्तये सोsस्तु बलिपूजां प्रयच्छतु ॥ ८ ॥ ( इशानकोण में बलिबाकुलादि चढावे ) ब्रह्मदिक्पाल — ब्रह्मलोकविशुर्योऽस्ति राजहंससमाश्रितः । संघस्य शान्तये सोsस्तु बलि पूजां प्रयछतु ॥ ९ ॥ ( उर्द्ध दिशा की तरफ बलिवाकुलादि चढावे ) शान्तये सोऽस्तु वकिं पूजां प्रयच्छतु ॥ १०॥ ( अधो दिशा की तरफ बलिवाकुलादि चडावे ) नाग दिक्पाल - पाताळाधिपतिर्योऽस्तु सर्वदा पद्मवाहनः । संघस्य दशदिक्पालो को बलि चढ़ाने के समय जल, चन्दन, पुरुप, धूप, दीप, १० पैसे, पान आदि चढ़ाने के बाद चम्बर डुलावे, शीशा दीखा है, शङ्ख, घडियाल, झांझ आदि बजावे, इसके बाद अखंड जल की धारा देवे । इति ।। ( दिक्पालादि विसर्जन करते समय हाथ में धुप कुसुमांजलि लेकर मंत्र बोल के चढावे ) * सात अनाजों के नाम गेहुं, चना, उडद, मुंग, जब (जो), मकई, जवार। यह सात अनाज उबालते है और उबाल कर चढातें है । For Private and Personal Use Only बलिप्र दानम् ।। २५ ।।
SR No.020366
Book TitleGurumurti Pratishtha Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangalsagar
PublisherJinduttsuri Gyanbhandar
Publication Year1961
Total Pages36
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size4 MB
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